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नहीं हो तुम मगर

होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ हरियाणा
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कठिन बड़ी डगर,
नहीं हो तुम सगर,
बोल रहे हर- हर,
नहीं हो तुम मगर।

चले हैं हम सफर,
लगता नहीं है डर,
गये थे हम घर घर,
नहीं हो तुम मगर।

अकेले हमें चलना,
घर छोड़ निकलना,
प्रकृति होती सुंदर,
प्रकृति में ही पलना।

सांझ जरूर ढलती
दिन फिर निकलता,
कभी खुशियां मिले,
कभी दिल मचलता।

कौन साथ जग देता,
क्यों दर्द व्यर्थ लेता,
जिंदगी गुलगुनाइये,
कहते आये हैं वेत्ता।

कभी खुशी मिलती,
कभी मिलते हैं गम,
कभी दर्द सह- सह,
आंखें हो जाती नम।

प्राण बेशक जाते हैं,
साहस नहीं छोडऩा,
अपने भी पराये होते,
पराये जन खोजना।

जिंदा दिल इंसान को,
सारा जगत ही पूजता,
हिम्मत हारे जन को,
कुछ भी नहीं सूझता।

धन दौलत की चाह,
जन को दे जाए दर्द,
बिन पैसे के जीना है,
कहलाता है वो मर्द।

वक्त के साथ चलो,
वक्त साथ देता रहे,
वक्त को छोड़ देना,
मृत्यु के सम कहे।

आया जन जाएगा,
कोई नहीं है अमर,
सभी कष्ट में रहते,
नहीं हो तुम मगर।।

परिचय :- होशियार सिंह यादव
जन्म : कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा
पिता : स्व. श्री जयनारायण (कवि) एवं गोपालक देहांत १९८९
मां : स्व. मिश्री देवी गृहणि देहांत २०१६
निवासी : महेंद्रगढ़ हरियाणा
शिक्षा : पीएच. डी. (जारी) एम. एससी (बायो एवं आईटी), एम.ए. (हिंदी, अंग्रेजी एवं राजनीति शास्त्र), एमसीए, एम. एड., पीजी डिप्लोमा इन कंप्यूटर, पी जी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एवं मास कम्यूनिकेशन, पी जी डिप्लोमा इन गांधियन स्टडिज, गोल्ड मेडलिस्ट पंजाब वि.वि.।
रचनाएं : अब तक विभिन्न विषयों पर २४ पुस्तकें प्रकाशित। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में शोधपत्र प्रकाशित, विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में कहानी, लेख, मुक्तक, क्षणिकाएं, प्रेरक प्रसंग, कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
हरियाणा साहित्य अकादमी से अनुमोदित पुस्तकों में : आवाज, बाल कहानियां, उपयोगी पेड़ पौधे, शिक्षा एक गहना
व्यवसाय : लेखक, पत्रकार एवं शिक्षण कार्य में श्रेष्ठता।
सम्मान : हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी द्वारा कहानी लेखन में प्रथम पुरस्कार सहित पांच दर्जन सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित। महेंद्रगढ़ न्यायाधीश द्वारा रजत पदक से सम्मानित। अरुंधती वशिष्ठ अनुंसधान पीठ द्वारा देशभर से आयोजित निबंध लेखन में एक्सीलेंस अवार्ड। हरियाणा के राज्यपाल से पुरस्कृत। तीन शोध भी प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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