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तेरे बिन दर्पण लगता झूठा

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रचयिता : रीतु देवी

झूठ को सच बयां करता दर्पण,
सारे भाव हम अपना करते अर्पण,
फिर भी तेरे बिन झूठा लगता दर्पन,
हूँ बाबड़ी करूँ मुखमंडल तेरे नयनों में दर्शन।
देख तेरे चक्षुओं में अपना मुख,
प्राप्त होती मुझे सांसारिक अलौकिक सुख।
गाऐं तू श्रृंगार रस , करूँ मोहिनी श्रवण
तुझ बिन नीरस है जीवन
करके श्रृंगार न देखूँ दर्पण,
आ जाओ सनम करूँ तहे दिल अर्चन।
दर्पण दिखा सब करते मेरे सौंदर्य का व

 

लेखीका परिचय :-  नाम – रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार

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