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छोटी बहन

जितेन्द्र गुप्ता
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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 एक प्रौढ़वय स्त्री प्रतिदिन बाजार से गुजरती। शांत सौम्य, सुंदर सा अलंकृत चेहरा। बातें जैसे मनमोहनी जब भी बात शुरू करती तो लगातार कहती रहती और लोग भी पुरे चाव से सुनते। कुछ समय बीतते-बीतते लोग का जैसे मन भरने लगा था कि एक नई स्त्री उस प्रौढा के साथ बाजार में दिखने लगी। इसकी वय ज्यादा नहीं थी। परिपक्वता चेहरे और बातचीत से झलकती थी। ये थोड़ा कम बोलती थी मगर जो भी बोलती सारगर्भित और भावनात्मक रूप से लबरेज। प्रौढा के बहुत से चाहने वाले और कुछ नये रसिक इसके दिवाने हो गये। सब उसके पीछे-पीछे बतियाते, चुहलबाज़ी करते घुमने लगे। सब आनंद में चल रहा था कि अचानक उन दोनों के साथ एक बहुत कमसीन, मासूम सी किशोरी बाजार में दिखी। एकदम शर्मिली, चुप-चुप सी। सारे शोहदे उसके पीछे लग लिये। सब अपने-अपने तरीके से शब्द बाण चला रहे थे। पहली दोनोें स्त्रीयों से की गई चुहलबाज़ी का आनंद उन्हे उकसा रहा था कि अचानक वो कोमलांगी पलटी और उन शोहदों के गालों पर तड़ातड़ तमाचें जड़कर तनकर खड़ी हो गई। शोहदे हत्प्रभ, बाजार स्तब्ध, आशिक सकते में। होश फ़ाख्ता। ये क्या हुआ। दिखने में कोमलांगी और झटका इतना जबरदस्त। बगैर कुछ कहें तीख़ा वार वो भी हिला देने वाला…!
“कौन है ये ?”
सबने उन पहली दोनों स्त्रीयों से पूछा।
“हम तीनों बहनें हैं!” प्रौढा ने बताया, “मैं “कथा” ये दुसरी “कहानी” और ये हमारी सबसे तेजतर्रार सबसे छोटी “लघुकथा”! देखने में कुछ मगर बात समझाने में सबसे तेज समझें!”
तीनों खिलखिलाने लगीं।

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परिचय :- जितेन्द्र गुप्ता
निवासी : इंदौर म.प्र.


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