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योगनी तू

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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योगनी तू हो निरंतर प्रेमयी
बढ़ती उत्कर्ष पथ पर।
है न्योछावर सर्वस्व तेरी
सहर्ष पुलकित बनकर।
आलिंगन-मिलन हेतु
बहती हैं मलयानील रुक रूक कर।
आज अभय तू निर्भय कर
जीवन की इसे गुरुतर पथ पर।
सुपत जीवन में जीवन रस लाया
आज हलाहल पूरे विशव में।
कोई नही नटवर आया
युद्ध अनाचार विद्वेष भय से।
भुचर, जलचर, नुभचर झुलस रहा
क्षणिक स्वार्थ में मानवी सभ्यता।
महमरण-प्रलय लाया।
आज प्रकंपित होता भू-है-
हरक्षण महाभीशन आया।
सुधा प्रेम बरसा हरषा तू
रजनीगंधा की मादकता।
नूतन रूप सृजन की बनकर
फिर से तू बोधिसत्व को ला।

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परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान


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