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दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे

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दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे,
यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे।
खुदसे ज्यादा था भरोसा तुमपर,
लगा तुम प्यार से गले लगा लोगे।।

दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे

यहां अपनो का क्या….
ना जगह अपनी, ना दुनिया अपनी,
ना अपना गम है ना खुशियां अपनी।
यही करता रहा में सोचकर गलती,
मेरी वफ़ा का तुम सिला दोगे।
दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे,
यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे।

मेरी यादों का क्या….
तुम किसी राह से गुज़रती थी,
बनके खुशबू बड़ी महकती थी।
मेरी नज़रो को क्या तुम भूल गई,
क्या फिर कोई आरज़ू जगा दोगे।
दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे,
यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे।

मेरी बातों का क्या….
मेरे उन दोस्तो को याद सब है,
तुमको हमने यूं भुलाया कब है।
मुझे अब दोस्तो ने भी छोड़ दिया,
क्या अब इस बात का भी बयां लोगे।
दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे,
यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे।

मेरी सांसो का क्या….
मेरी दिल की दवा का रूप हो तुम,
भरी बारिश में निकली धूप हो तुम।
तुम्हारे जाने से मैं अब टूट गया हूँ,
क्या मुझे अब मौत की सज़ा दोगे।
दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे,
यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे।

मेरे वादों का क्या…
रोज़ करती थी इंतज़ार मेरे आने का,
कसूर क्या था तेरा मुझसे दूर जाने का।
अब तो तन्हाइयो से डर लगता है,
क्या फिर आने की तुम वजह दोगे।
दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे,
यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे।

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लेखक परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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