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तू सुकून थी

पूनम शर्मा
मेरठ
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मां !
तू तो सारे सुकून लेकर
फुर्र से उड़ गई,
अब वो सुकून नहीं मिलता
जो तुझसे जिद करके,
लड़ के मिलता था,
मुझे जिताने को
तू हार जाती थी,
पर मैं विजया कहां हुई
तू तो मुझे जिताने के लिए
हारती थी ना,
मेरी झूठी मां,
हर अच्छी चीज
मेरी तरफ सरका देती थी,
“मुझे पसंद नहीं है” ये कहकर,
ये कैसा लाड़ था तेरा जो
तू अपने साथ ले गयी,
अपना वो दुलार,
अपने झुर्रियों पड़े गिलगिले
हाथों में समोसा दबाए रखना,
कहना, “मिर्च बहुत है”,
मुझे तब समोसा बहुत पसन्द था,
अब समझी तेरी चालाकियां,
तू मेरा स्वाद ले गयी,
स्वाद तो तेरे झुर्रियों भरे हाथों का
और प्यार के कसीदों का था,
समोसे तो आज हर नुक्कड़
पर मुंह तिकोना किए
राह ताकते हैं,
तू रोज धमकाती थी
“मैं चली जाऊंगी” पर ये
मेरी सोच से परे था,
तू चली गई,
मैं घर की चौखट पर
आज भी तुझे खड़ा पाती हूं
अपनी राह तकते,
मनुहार भरी आंखों से इंतजार-रत
तू तो मेरा, वो सुकून ले गयी
जिसमें मैं साल में एक बार
आकर सुस्ताती थी
तेरे लाड़ की शक्ति
संचित कर धरोहर बना
ले जाती थी फिर से
नई उमंगों के साथ
घर के बाहर खड़ा गुलमोहर
आज भी खिलखिलाता है,
कोयल आज भी कुहकती है,
तेरा लगाया आम का पेड़,
मंजरित होकर तेरी
कहानियां सुनाता है,
तेरे बच्चों को मीठे-मीठे
फल खिलाता है,
पर तेरे बच्चें
बिना मां के कहलाते हैं
तरसते हैं बहुत,
इस जहां में
तेरी अंधी आंखों से बरसता
वो प्यार नहीं है,
अब वो आंचल नहीं है
जो चलते वक्त तू
मेरे माथे पर रख
दिया करती थी,
समेट कर ले गई
मेरी मां वो अलौकिक प्यार,
तू बहुत-बहुत याद आती है,
मां तेरा विकल्प
भगवान के पास भी नहीं है।

परिचय :- पूनम शर्मा
निवासी : मेरठ
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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