रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर
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तूने देखा नजर लगी
तूने देखा नजर लगी,
पिया खिला बदन मुरझाया।।…
मैं नाजुक सी कली चमन की,
तू भंवरा दीवाना।-२
मुझे भरमाने भ्रमर करे,
क्यों छेड़े राग तराना ।।
तूने देखा नजर लगी,
पिया कोमल तन कुम्हलाया।।…
तूने देखा नजर लगी,
पिया खिला बदन मुरझाया।।…
नीम-हकीम सभी आए,
वैरन ना नजर हटे है ।-२
सांसों की गति तेज हुई,
मन ही मन क्या-क्या रटे है।।
तूने देखा नजर लगी,
पिया अंग-अंग झुलसाया।।…
तूने देखा नजर लगी,
पिया खिला बदन मुरझाया।।…
दिन में तारे दिखते हैं,
और रातें किरणों वाली।
घरके जन सब कहें बावरी,
सखियां देतीं गाली।।
तूने देखा नजर लगी पिया,
कहें प्रेत का साया ।।…
तूने देखा नजर लगी,
पिया खिला बदन मुरझाया।।
परिचय :- विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।
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