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तुम आओगे बस आंखों में ये ख्वाब पालते रहते हैं

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वंदना शर्मा
झालावाड़ (राजस्थान)

यादों का बिछौना करके हम, दिन -रात तड़पते रहते हैं।
तुम आओगे बस आँखों में, ये ख्वाब पालते रहते हैं।।

माना कि मैं सुन्दर तो नहीं, तुम चाहो जिसे मैं वो भी नहीं।
मैं मीराँँ सी दीवानी नहीं और गोपियों सी मस्तानी नहीं।
फिर भी मन-मंदिर में प्रियतम, हम तुझे सजाते रहते है।।

तुम भूल गए उन यादों को, पहली बरसात की बूँदों को ।
वो मिलना -जुलना छुप-छुपकर, सावन के प्यारे झूलों को ।
हम आज तलक उन झूलों पर, बस तुम्हें झुलाते रहते हैं।।

तुझको जो दिए उन वचनों पे, अब तक भी यार समर्पित हैं।
सास-ससुर ,परिवार की सेवा, में हर स्वाँस समर्पित है।
तुझको जो थी कसम सदा, हम दिल से निभाते रहते हैं।।

आँखों के अश्रु जमते गए, जम जमकर प्रिय पहाड़ बने।
इस पर्वत से नदियां निकलेगी ,और बाड़ कहीं आ जाएगी ।
बनके मोरनी बिलख-बिलख बादल को निहारा करते हैं।।

हम भोर सँवर कर के प्रियतम, हर रोज तैयारी करते हैं।
तेरी पसंद का भोज प्रिय, हर रोज बनाते रहते है ।
दिल के अल्फाजों को लिख-लिख, चिट्ठी को फाड़ते रहते हैं ।।

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लेखीका परिचय :- 
नाम – वंदना शर्मा आत्मजा श्री देवकी नंदन शर्मा
जन्म – ३ नवंबर, १९९१
निवासी – अकलेरा, जिला- झालावाड़ (राजस्थान)
शिक्षा – स्नातकोत्तर
लेखन कार्य – जब पहली बार देवास से आए शशीकांत यादव सर को सुना, बस तभी से ईशवर की ये अनुपम दौलत मुझे मिली |
रूची – डेकोरेशन क्राफ्ट बनाना ,लेखन
लेखन – व्यंग्य, कविता, एकांकी


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