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प्रीति की रसधार हो तुम

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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प्यास जो दिल की बढ़ाए, प्रीति की रसधार हो तुम।
छेड़ दे संगीत स्वर जो, कर्ण प्रिय झंकार हो तुम।।१

प्राण बनकर बस गई हो, श्वास में प्रश्वास में हर,
शुष्क पतझड़ उर विपिन का मौसमी श्रृंगार हो तुम।।२

घोर तम में टिटहरी सी, आस की आवाज देकर,
रश्मियों सी छू रही तन, भोर का उपहार हो तुम।।३

महमहाते बाग में तुम, चहचहाती पंछियों सी,
जो न उजड़ेगा कभी, सौंदर्य का बाजार हो तुम।।४

उर समंदर में विचारों की भटकती नाव जब भी,
दर्द देती उर्मियों को चीरती पतवार हो तुम।।५

हो गया साकार ‘जीवन’ जो किया गठजोड़ तुम से,
स्वप्न देखे जिस भवन के, नींव का आधार हो तुम।।६

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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