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तू शीतल मंद समीर

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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तू शीतल, मंद समीर बनी,
ठंडक मुझको पहुंचाती है।
जब क्रोधित मैं हो जाता हूं,
तू प्यार के नग्में गाती है।।

ठंडा करना तेरा गुण है,
तू गहरा शांत सरोवर है।
मैं सरिता का चंचल चेहरा,
निर्भीक बनी तू पत्थर है।।
हर चोट सहज ही सह लेती,
हंसती मूरत मदमाती है।।
जब क्रोधित मैं हो जाता हूं,
तू प्यार के नग्में गाती है।।

संतोषी है तू साबिर है,
खुश उसमें जो मिल जाता है।
राजी तू रब की मर्जी पर,
हर मौसम तुझ को भाता है।।
घर भर को तृप्त करें पहले,
कब भूख तुझे तड़पाती है।
जब क्रोधित मैं हो जाता हूं,
तू प्यार के नग्में गाती है।।

ठंडी पट्टी जब माथे की,
तपते तन की बन जाती तू।
छू मंतर कर देती दुख सब,
यूँ चारागर कहलाती तू।।
“अनंत” तू ममाता की देवी,
शीतलता तेरी थाती है।
जब क्रोधित मैं हो जाता हूं,
तू प्यार के नग्में गाती है।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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