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हाँ, मैं नारी हूँ

मित्रा शर्मा
महू (मध्य प्रदेश)
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जब भ्रूण बनकर आई थी
दादी के मन में यह बात आई थी
मेरा कुल का चिराग है या मनहूस
मां ने अपनी वेदना छुपाई थी।

मां कहने लगी भगवान से
आने दो इसको संसार में
मेरा हिस्सा है यह अनोखा
सिचूँगी अपनी कोख़ में ।

मैने सोचा आऊंगी जरूर आऊंगी
सब को समझाने के लिए
सबकी सोच को बदलना है
मै अब हार नहीं मानने वाली।

नारी होकर नारी पर ही अत्याचार
कभी होता दुर्व्यवहार
कभी लगते उसपर लांछन
कभी मिलता व्यभिचार।

मैं अहल्या, पत्थर बन तप करने वाली
सावित्री हूँ , सत्यवान को जगाने वाली।
दुर्गा हूँ राक्षस का संहार करने वाली
लक्ष्मी हूँ , धनधान्य करने वाली।

हाँ, मैं नारी हूँ !
हां मैं सरस्वती, वीणावादिनी हूँ
ज्ञान देने वाली
मैं यशोदा हूँ ,कान्हा को दुलारने वाली।
द्रोपदी बन कृष्ण को पुकारने वाली ,
सीता बन सहन करने वाली ।
हां, मैं नारी हूँ ! हाँ, मैं नारी हूँ !!

परिचय : मित्रा शर्मा
निवासी : महू मध्य प्रदेश (मूल निवासी नेपाल)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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