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वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया

श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)

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वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया।
कहते हैं बड़ा बुरा था ये साल।
लोग घरों में बंद,
आवाजाही पर, पार्टी पर,
घूमने-घुमाने पर
व्यर्थ के दिखावे में बर्बाद होती
जिंदगानी पर रोक।
यार ऐसे भी कोई जीता है?
सच में बड़ा बुरा था ये साल।
सच में बुरा तो था पर
गरीबों के लिए, यतीमों के लिए
उन रोज कमाकर खाने वालों के लिए।
क्योंकि रोजगार बंद,
रोजगार के साधन बंद।
जिंदगी उनकी उलझकर रह गई थी।
लेकिन सच पूछिए तो
यही वह साल भी था
जब परिंदे
जी भर कर बिना डर आसमान में उड़े।
न धुआं, न शोर।
पशु भी आदमी नामक प्राणी से
कुछ समय के लिए मुक्ति पाए।
प्रकृति ने नई दुल्हन-सा श्रृंगार किया।
नदियां नहाई, स्वच्छ हुई।
पेड़-पौधे जैसे नवजीवन पाए,
धरा ने फिर अपना धवल रूप धरा।
मनुष्य भी मनुष्य के करीब आया,
न जाने कितने हाथों ने दूसरों के घर
आशा का दीप जलाया।
घर गुलज़ार हुए,
दूरियां मिटी और अपनापन आया।
रसोई घर फिर से खिलखिलाए,
चूड़ियों की झनकार गूंजी,
भूले हुए स्वाद ने जमकर गीत गया।
पुराने शौक नींद से जागे
लोगों नें उनसे खूब सुख पाया।
लोग चैतन्य हुए,
भारतीय तौर- तरीकों ने
हर एक घर में फिर
अपना परचम लहराया।
बेटी, बेटा, मां, पिता, पति, पत्नी
सब रिश्ते नज़दीक आए,
सबने सबके लिए समय पाया।
काम बढ़े तो हर एक ने
काम सीखे और हाथ बंटाया।
तो वर्ष २०२०
बुरा कैसे कहलाया?
अरे भाई,
यही तो वह वर्ष था जिसने,
बंजर होती भावना की भूमि को
स्नेह से सिंचित किया और
हमें मनुष्य होने का
सुखद अहसास कराया।
हमें मनुष्य होने का सुखद अहसास कराया।

परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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