मिथिलेश कुमार मिश्र ‘दर्द’
मुज्जफरपुर
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बोलो, आखिर कब तक सहते?
थक गये थे कहते-कहते।
विश्व बिरादरी मान रही थी।
तुमने किया है, जान रही थी।
किसके बल तुम तने हुए थे?
क्यों यों भोले बने हुए थे?
रोना है, तुझको रोना है।
तेरे किए न कुछ होना है।
प्रतिशोध की ज्वाला में हम
कबतक दहते रहते-
बोलो, आखिर कबतक सहते?
सोचो, अब तुम कहाँ खड़े हो?
चारो खाने चित्त पड़े हो।
करनी का फल भोग रहे हो।
दो-दो युद्ध की हार सहे हो।
रे मूर्ख, मूर्खता छोड़ो अब तो।
रे दुष्ट, दुष्टता छोड़ो अब तो।
वीरों की है हुई शहादत,
मौन भला हम कबतक रहते-
बोलो, आखिर कबतक सहते?
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परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र ‘दर्द’
पिता – रामनन्दन मिश्र
जन्म – ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार)
निवास – मुज्जफरपुर
शिक्षा – एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी.
उपलब्धियां – कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
अप्रकाशित रचनाएं – यज्ञ सैनी (प्रबंध काव्य), भारत की बेटी (गीति नाटिका), आग है उसमें (कविता संग्रह), श्रवण कुमार (उपन्यास), परानपुर (उपन्यास), अथ मोबाइल कथा (व्यंग-रचना)
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