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संग लिखा काँटों में पलना

विवेक रंजन ‘विवेक’
रीवा (म .प्र.)

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फूल तेरी तक़दीर भी क्या है,
संग लिखा काँटों में पलना।

चढ़ते हो देवों के सर पर,
पड़ता शव के साथ भी चलना।

हँसी खुशी के मेलों से भी,
गले मिला करती तनहाई।

तुम बनने जाते वरमाला,
जहाँ कहीं बजती शहनाई।

सजते हो सेहरे में लेकिन
सेज पे तो पड़ता है कुचलना।

फूल तेरी तक़दीर भी क्या है,
संग लिखा काँटों में पलना।

बिखराते हो रंग खुशी के,
हाथ तुम्हारे क्या रह जाता।

बासंती फागुन जाते ही,
पतझड़ सा जीवन ढह जाता।

महकाते तुम भी हो चाहते,
काँटों वाली डगर बदलना।

पर फूल तेरी तक़दीर यही,
संग लिखा काँटों में पलना।

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परिचय : विवेक रंजन “विवेक”
जन्म –१६ मई १९६३ जबलपुर
शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र
लेखन – १९७९ से अनवरत…. दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास “गुलमोहर की छाँव” प्रकाशित हुआ है।
सम्प्रति – सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं।


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