डाॅ. हीरा इन्दौरी
इंदौर म.प्र.
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मूंछो पे दे रहे हो बहोत ताव
पहलवान।
कुछ दम है तो अखाड़े में आ
जाव पहलवान।।
हरेक से अकड़ते हो ताकत के
जोम में।
कुछ अपनी हड्डियों पे तरस खाव पहलवान।
मुझसे मुकाबला कोई आसान काम है।
पिस्ते बदाम और अभी खाव
पहलवान।।
जनता हो काँग्रेस हो या कोई पार्टी।
जिसमें जगह हो घुसने की घुस जाव पहलवान।।
धन्धे की नौकरी की तुम फिक्र
ना करो।
जबतक मिले हराम की तुम खाव पहलवान।।
बजरंग के हो चेले तो एक काम तुम करो।
जाओ कोई पहाड़ उठा लाव
पहलवान।।
स्टूडियो के फोटोग्राफर ने ये कहा।
फोटो तो सीना तान के खिंचवाव पहलवान।।
पत्नी तुम्हारी करती है किस तरह तुमसे बात।
“हीरा” का देखो मुँह नहीं खुलवाव पहलवान।।
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परिचय :- डाॅ. “हीरा” इन्दौरी प्रचलित नाम, डाॅ. राधेश्याम गोयल
जन्म दिनांक : २९ – ८ – १९४८
शिक्षा : आयुर्वेद स्नातक
साहित्य लेखन : सन १९७० से गीत, हास्य, व्यंग्य, गजल, दोहे लघु कथा, समाचार पत्रों मे स्वतंत्र लेखन तथा विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाओं का पचास वर्षों से प्रकाशन
अखिल भारतीय कविसम्मेलन, मुशायरों में शिरकत कर रचना पाठ, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर रचना पाठ विभिन्न साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
विषेश : आध्यात्मवेत्ता विद्या ज्योतिष के ज्ञाता असंख्य कुण्डलियों का सफल फलादेश कर मार्गदर्शन दे चुके हैं तंत्र मंत्र में विशेष रूचि
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