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वाह क्या नजारा था

वाह क्या नजारा था

रचयिता : वंदना शर्मा

एक दिन

घर से निकलते ही
दिखा
वाह क्या नजारा था?
एक आदमी
एक हाथ में खंजर लिए
दूसरे को काट रहा था |
 पहले तो
देखकर कुछ समझ नहीं आया |
फिर सोचा
कि
शायद कोई पागल है
या कोई जादूगर,
क्योंकि एेसा अचम्भा जीवन में पहली बार देखा था |
देखकर रहा नहीं गया,
जाने लगी उसे रोकने
तो
सहेली ने मुझे रोक दिया
कि रहने दो
क्यों व्यर्थ के पचड़े में  पड़ती हो |
पर समस्या गम्भीर है
स्त्री स्वभाव
और कवि हृदय
पूछना आवश्यक हो गया था |
नहीं पूछें तो पेट दर्द |
मुझसे
रहा नहीं गया |
पास जाकर बोली ,
कि चाचाजी
क्या कर रहे हो?
अपने ही हाथों स्वंय
अपने ही हाथ क्यों
काट रहें है ?
आप शक्ल से
पागल भी तो नहीं लगते
तो ये पागलपन क्यों?
त्यौरियाँ  चढ़ाते हुए
उन्होने
मुझे घूरा|
 क्षण भर
ठहर कर फिर कहा,
कि
बिटिया  बात तो
समझ की करती हो|
पर  ये नहीं  देखती
कि  दुनिया का हर आदमी
अपने ही हाथों
अपनी  दूसरी  भुजा
को काट रहा है |
मैं  तो केवल एक प्रतिमान हूँ|
सुनना चाहती हो तो सुनो|
तुम्हें  ये लगता है,
कि मैं  अपना हाथ
काट रहा हूँ |
पर
मेरे  दर्द  का अन्दाजा तो लगाओ|
मेरी आँखों से आँख मिलाकर तो देखो|
अरी पहली! मैं हिंदुस्तान हूँ |
मुझे आदत है, जख्म सहने की,
क्योंकि
मै कटता रहा हूँ, कितनी बार
बँटता रहा हूँ हर बार
लहुलुहान होता हूँ|
और तुम्हें लगता है, कि
मैं अपने हाथ काट रहा हूँ |
अरे नहीं!
ये दोनों भुजाएँ
मेरी दो औलाद है,
एक हिंदू तो एक मुसलमान है |
छोटी -छोटी  बातों में
तनकर खड़ी है, एक दूसरे के सामने,
एक खंजर तो एक बम लेकर खड़ी है |
सोचो
क्या तुम मुझसे अलग होकर जी पाओगे|
अरे! अपनी ही नजरों में गिर जाओगे |
अरे!  याद करो
उस दिन को
जब रावण मरण शैय्या  पर पड़ा था,
तो लक्ष्मण से उसने भी तो
यही कहा था,
कि मैं हारा हारा हारा
क्योंकि मुझे भाई ने छला|
वो जीत गया,
क्योंकि उसके भाइयों ने उसका साथ दिया|
अरे!  मत लड़ो अपने ही भाई  से |
मैं  मानता हूँ |
तुम जवान हो,
खून में उबाल है,
तो
तुम्हारे बाप की हिदायत है |
शौक है, लड़ने का, तो लड़ो
दुश्मन से |
मरना है, तो मरो सरहद पर |
अरे!
उस दिन
तुम्हारी  मौत का उत्सव भी महोत्सव
हो जाएगा,
और
तुम्हें लेने काल तो क्या
स्वयं महाकाल चला आएगा|
लेखीका परिचय :- 
नाम – वंदना शर्मा आत्मजा श्री देवकी नंदन शर्मा
जन्म – ३ नवंबर, १९९१
निवासी – अकलेरा, जिला- झालावाड़ (राजस्थान)
शिक्षा – स्नातकोत्तर
लेखन कार्य – जब पहली बार देवास से आए शशीकांत यादव सर को सुना, बस तभी से ईशवर की ये अनुपम दौलत मुझे मिली |
रूची- डेकोरेशन क्राफ्ट बनाना ,लेखन
लेखन – व्यंग्य, कविता, एकांकी

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