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वाह रे ठाकुर जी

आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश

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तुम ने गज़ब रचा संसार,
चहुंओर मचा है हाहाकार,
वाह रे ठाकुर जी………..!

बेबसी का लगा हुआ अंबार,
खोया अपनापन और प्यार,
वाह रे ठाकुर जी…………!

छद्मश्री को पद्मश्री उपहार,
सच्ची कला हो रही भंगार,
वाह रे ठाकुर जी…………!

खूब बढ़ा काला कारोबार,
मौन देख रही है सरकार,
वाह रे ठाकुर जी…………!

नारियों पे जुल्मों, अत्याचार,
दिख रही खाखी भी लाचार,
वाह रे ठाकुर जी…………!

अपराधी घूमें खुले बाजार,
शरीफों के लिए कारागार,
वाह रे ठाकुर जी…………!

मोबाइल की है कृपा अपार,
टूट रहे हैं, रिश्ते, घर, परिवार
वाह रे ठाकुर जी………….!

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परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन- आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।


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