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अच्छा होता

जयश्री सिंह बैसवारा
सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश)

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कितना अच्छा होता
जब सब अच्छा होता
जो हम अपनी नजरों से
देखते हैं वो सब सच्चा होता
ख्वाबों को सच मान लेते हैं हम
मगर ख्वाब हकीकत होते तो
कितना अच्छा होता

किसी मिट्टी की खुशबू की तरह
काश इंसान का चरित्र भी होता
जो हर वक़्त महकता होता
तो कितना अच्छा होता

पर्दे के पीछे की दुनिया भी
काश उतनी ही खुबसूरत होती
जो सामने पर्दे के है
नजारा न छिपता किसी से कोई
तो कितना अच्छा होता

जो मन में है वो जुबां भी बोले
जो जुबां से निकले वो मन का हो
बेमुरव्वत न हो कुछ भी किसी के लिए
तो हृदय से हृदय तक का
तार कितना अच्छा होता

नजरें कुछ और जेहन कुछ और कहे
इरादा कुछ नजारा कुछ और कहे
कैसी है ये कहानी जहां कि
बातों में संशय न होता
तो कितना अच्छा होता

परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा
निवासी : सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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