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‘ताज’ वतन का वंदन कर 

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रचयिता : मुनव्वर अली ताज

हर  दुख  का अभिनंदन  कर
चिंता मत कर चिंतन  कर

खुशियों के पल निकलेंगे
दुख सागर का मंथन  कर

हर मानव को गंध मिले
तन मन धन को चंदन  कर

जिन शब्दों से दिल ख़ुश हो
उन शब्दों का चुंबन  कर

भँवरा बन कर ग़ज़लों का
सारे जग में गुंजन कर

जाना है उस पार अगर
मौजों का उल्लघंन कर

प्यार का शुभ  संदेश है ये
‘ताज’ वतन का वंदन कर

लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन


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