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विश्व गुरु भारत

डॉ. सत्यनारायण चौधरी “सत्या”
जयपुर, (राजस्थान)
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जहाँ वेद उपनिषद का
अद्वितीय ज्ञान।
और मिलते हैं पुराण,
आरण्यक और आख्यान।
तुलसी का रामचरित व
वाल्मीकि जी की रामायण।

समझाया है सबको,
नर में ही बसते हैं नारायण।
सांख्य-योग,
न्याय-वैशेषिक आदि से,
जीवन का मर्म है
जिसने समझाया।
चार्वाक ने भौतिकवाद
है पनपाया।
गीता ने निष्काम
कर्म है सिखलाया।
जो भगवान श्रीराम जैसा
आदर्श जग को देता है।
सीता माँ जैसी पतिव्रता पर
गर्व सभी को होता है।
जहाँ रामायण, गीता
और है महाभारत।
ये है हमारा भारत
विश्वगुरु भारत।

आर्यों की इस पावन धरा से,
ज्ञान का शाश्वत प्रकाश हुआ।
शून्य के आविष्कार को,
सम्पूर्ण जगत ने मान लिया।
गुरुकुल प्रणाली द्वारा
शिक्षा का प्रसार किया।
व्यवहारिक शिक्षा का भी
यहीं से सूत्रपात हुआ।
विश्व ने माना लोहा भारत का,
विश्व गुरु तब कहलाया।
नालंदा और तक्षशिला ने
अपना परचम फहराया।
न जाने कितने विदेशी यात्री आये।
ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज यहीं से पाये।
श्री कृष्ण की गीता का ज्ञान जगत में,
अद्भुत और बेमिसाल है।
पतंजलि, धन्वन्तरि,
शुश्रुत और चरक की
चिकित्सा अनमोल है।
गुरु विश्वामित्र, वशिष्ठ और
द्रोण शिक्षा के आधार हैं।
हनुमान, जामवंत, नल और नील की
कौशल कला अपरम्पार है।
आज जननी संस्कृत भाषा पर
सारा जग शोध कर रहा ।
भारत के वेद पुराणों को
क्यों सारा जग पढ़ रहा।
आश्रम और वर्ण व्यवस्था में
सच्ची सामाजिकता है।
कर्म और वय आधारित कर
दिखलाई मनोवैज्ञानिकता है।
त्रिकोणमिति व बीजगणित
शून्य और बाइनरी।
आर्यभट्ट और राममनुजम ने
गणित की गुत्थी आसान करी।
महर्षि कणाद की अणु संकल्पना,
भारद्वाज ऋषि की विमानविद्या।
भास्कराचार्य का गुरुत्वाकर्षण,
अणुशक्ति को दे गए होमी भाभा।
जगदीश चंद्र बोस ने दिया
ताररहित तरंगशास्त्र।
भास्कराचार्य जी ने दिया
भाषा और खगोलशास्त्र।
इतने हैं आविष्कार किये,
लेखनी से लिख पाना असम्भव है।
भारत विश्व गुरु था, है और रहेगा,
इसके बिन जगत में
नवीनता का आना असंभव है।
आओ करें प्रतिज्ञा सभी
भारत के गौरवशाली
इतिहास को अक्षुण्ण रखेंगे।
चाहे हो जाये कुछ भी
विश्वगुरु भारत का सर
नहीं झुकने देंगें।
करें सदकर्म हम ऐसे
माँ भारती गौरवान्वित हो।
चाहे कर लें हम कुछ भी पर
माँ भारती के सम्मान में
सदा नतमस्तक हों।

परिचय :- डॉ. सत्यनारायण चौधरी “सत्या”
निवासी : जयपुर, (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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