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नारी

केदार प्रसाद चौहान (के.पी. चौहान)
गुरान (सांवेर) इंदौर

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नारी को जो समझे बेचारी।
वह नर हे बड़ा अत्याचारी।।

नारी को भी अब निडर होना चाहिए।
अपनी रक्षा के लिए स्वयं लीडर होना चाहिए।।

छोड़कर मान मर्यादा अब माता सीता वाली।
बन जाओ रणचंडी नवदुर्गा और काली।।

देखकर माथे का सिंदूर।
समझे ना कोई मजबूर।।

नारी तेरे हाथों से अब कमाल होना चाहिए।
एक खंजर के वार से दरिंदों का चेहरा लाल होना चाहिए।।

कैसे समझाएंगे इनको यह आदमखोर दरिंदे हैं।
डूब मरो कानून के रखवालों जब तक जुल्मी जिंदे हैं।।

नजर उठा कर देख ना सके इनकी आंखें फोड़ देना चाहिए।
काट कर दोनों हाथ पैर तोड़ देना चाहिए।।

बीच चौराहे सूली पर टांग कर सजा देना चाहिए।
केरोसिन डालकर इन दरिंदो को भी आग लगा देना चाहिए।।

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लेखक परिचय :-  “आशु कवि” केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान “समीर सागर” 
निवासी – गुरान (सांवेर) इंदौर

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