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नारी की व्यथा

डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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हे पुरुष…!
तेरी चौखट पे खड़ी
सदियों से प्रतीक्षारत
स्त्री हूंँ मैं…!!!

खुद में
रेशा रेशा
पिरोती तुझे…!

सांँस-सांँस में
महसूसती तुम्हें…!

धड़कन-धड़कन में
समाती तुझे… !

खुद को
कतरा-कतरा
पिघलाती तुझमें… !

रोम-रोम से
समर्पित तुझ पर!

खुद को
तेरी हर चाह पर
न्योछावर करती…!

रही न मैं!
बन कर रह गई
परछाई भर तेरी!!

बस एक नन्हीं-सी
चाह मार न सकी!

और
ताक रही तुझे
एकटक… !!

कब झरेगा झरने सा
झर झर झर झर…
तेरी दृष्टि से
अनुराग
सिर्फ मेरे लिए!!!

परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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