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औरत ही औरत की शिकारी

प्रियंका पाराशर
भीलवाडा (राजस्थान)
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औरत ही औरत की शिकारी
सबसे भयानक
रूढिवादिता की बीमारी
न दे उचित योग्यता को महत्व
स्त्री ही स्त्री पर जमाए
उच्च पद का प्रभुत्व
स्वाधिकार मे अधीन
स्त्री का क्षीण करे अस्तित्व
कभी सास रूप में बंधिश बहु पर,
हो जैसै बंधुआ मजदूर
कुछ गलती होने पर ओरो से
तुलना और कर दे मशहूर
स्वैच्छिकता पर रोक,
बस ताने सुनने को करे मजबूर
पराए घर से आई सास,
पराए घर से ही आई बहु
स्वनिर्मित प्रथाओ को,
सास की जैसे बहू निभाए हूबहू
सास-बहू दोनो का ही है
समान अधिकार
उच्च पद के रौब में,
उत्पन्न होता मानसिक विकार
जरा सी सोच कि, स्वयं को
मुझसे ज्यादा न समझ ले
हमने जो जो सहा तो
वही सब, ये क्यों ना सह ले
मानसिक तौर पर वही औरत,
दूसरी औरत का करती शिकार
जिसमें अयोग्यता और
आत्मविश्वास की कमी का हो विकार
समान कार्यस्थल पर नए
योग्य सहकर्मी से ऐसा विद्वेष
जैसे स्त्री ही स्त्री को जेठानी,
देवरानी,ननद बन दिखाए तैश
औरत से ही औरत को ईर्ष्या,
का सबसे बड़ा पितृसत्ता को फायदा
उच्च पद के अहं मे औरत गिनाने मे रह जाती,
स्वार्थ से निर्मित उचित-अनुचित कायदा
स्त्री होकर स्त्री की न समझ सके
मजबूरी और गंभीर बीमारी
निज स्वार्थ हेतु नियम पालन की
अति ने औरत की मति मारी
हो रही है औरत ही औरत की
सबसे बड़ी शिकारी

परिचय :- प्रियंका पाराशर
शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी)
पिता : राजेन्द्र पाराशर
पति : पंकज पाराशर
निवासी : भीलवाडा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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