दुर्गादत्त पाण्डेय
वाराणसी
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कभी सुना है, आपने?
उस देवी के बारे में
जो हर -वक़्त, जिम्मेदारीयों तले
खुद को, समर्पित किए है,
टूटी झोपड़ी को, लिपना
ताकि, झोपडी की दीवारें
जल्दी फट न जाए.
कम ही खाती है, वो
कहीं खाना, मेरे बच्चों को
घट न जाये,
कम ही सोती है, वो
आराम, उसके लिए अपराध है
मजबूरियों की चक्की में
खुद को पीसना
यही उसकी, अनोखी याद है,
कभी देखा है, आपने?
खेतों में काम करते, उस माँ को
हाथों में हंसिया लिए
चिलचिलाती धुप में, जलते हुए
अपनी किस्मत की, लकीरों को
देखते हुए..
उन्हें देखकर, कभी हसते हुए
कभी रोते हुए,
कभी खुद ही सम्भलते हुए,
क्या देखा है, आपने?
उस माँ के नन्हें, उस बच्चे को
जो खेतों के, मेड़ पर.
माँ बसुंधरा के गोद में, ख़ुशी से
उछल रहा हो
बड़े -बड़े, महलों के गद्दे
फीके सा लग रहें,
उस मिट्टी के सामने,
क्या समझा है, आपने?
उस असहाय, नारी के दर्द को
हर -पल उसके, हक को
नकार दिया जाता है
बुद्धिजीवियों के, उस पंचायत में
उसे कमजोर, बता दिया जाता है,
आखिर कब तक, चुप रहेगी वो?
उसे अब जागना होगा..
अपने अभिव्यक्ति की
आजादी की खातिर
उसे बताना होगा, उस समाज को
कि, कमजोर नारी नहीं
कमजोर, बुद्धजीवीयों की, वो
पंचायत है..
लड़ना होगा, अब उसे
स्वाभिमान की लड़ाई
अपने हक के लिए,
आवाज बुलंद करना होगा
उनके सामने..
जो हर-बार नारी को
कमजोर बता दिया करते हैं!!
परिचय : दुर्गादत्त पाण्डेय
सम्प्रति : परास्नातक (हिंदी साहित्य ) डीएवी पीजी कॉलेज, बनारस यूनिवर्सिटी वाराणसी
निवासी : वाराणसी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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