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नारी

मित्रा शर्मा
महू – इंदौर

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कई कसीदे काढ़े गए तेरे चाहत पे,
निहारा होगा तुझे मन के आइने से ।
कोमलांगी कहलाई तू
हृद यांगिनी कहलाई,
कभी राधा कहलाई तू
कभी लक्ष्मी कहलाई।

कभी दुर्गा बनकर
करती है संहार,
कभी अन्नपूर्णा बनकर
भरती है भंडार ।

सृजना की खानी
जननी जगत की,
धरा बन सहती
सारे कष्ट दामन की।

चिंता के साए में भी होठों पे
मुस्कान बिखेर कर ,
सारा गम भूल जाती है
थोड़ा प्यार जताने पर।

अपनों के लिए रोज
मैराथन दौड़ती है,
अपने अरमानों को रौंदकर
सहचरी बन आगे बढ़ाती है।`

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परिचय : मित्रा शर्मा – महू (मूल निवासी नेपाल)


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