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बिना बेटियों के

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डॉ. बी.के. दीक्षित

बिना बेटियों के घर सूना तो होता है।
उत्साह हमारा देख इन्हें,दूना होता है।

रूह तलक ठंडी ठंडी है,,,,,,,बेटी की बातों से।
सो जाऊँगा आज बेफिकर,जगा हुआ हूँ रातों से।

रीति पुरानी सदियों की,क्यों कमतर बेटी मानी जाती?
जिम्मेदारी में हर बेटी,,,,,,इक़ तरुवर सी जानी जाती।

नहीं सुधार हुआ दुनिया में,महिलादिवस मनाते क्यों?
हक़ होना बेटी पर कितना,कुछ लोग हमें समझाते क्यों?

संस्कार ,व्योहार ,प्यार और अदब ज्ञान की खूबी है।
खुशियों भरा खज़ाना बेटी,वाकी दुनिया झूठी है।

 

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।


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