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शरद ऋतु

रीना सिंह गहरवार
रीवा (म.प्र.)

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बदलते मौसम संग
प्रकृति नव निर्माण करती
नव ऋतु का आगाज़ करती
नव आशाओं का संचार करती।

मंद होती रवि की तपन
नव कलियों का ये आगमन
नव पुष्पों का यों पृष्फुटन
आगाज़ है अंजाम का
नई सुबह का और शाम का।

पल्लव भी मुस्काते हैं
पुष्प जो अगडाते हैं
विकसित हो खिल जाते हैं
अति हर्षित मन मुस्काते हैं।

सर्द सहमी रातों में
ममता के अहसासों में
तपन अग्नि की हाथों में
सब संग हो जज़्बातों में।

अकड़ी हुई सी रातें हैं
सुबहें भी सर्द सिमटी सी
कुहरे का आगाज़ है
नव ऋतु का अहसास है।

वो आया बचपन याद है
उन लडकियों की तपन आबाद है
शीत ऋतु और सिगड़ी का जलाना
राहत का आगाज़ है।

हाँ… ये नव ऋतु का आगाज़ है
नव ऋतु का आगाज़ है।

परिचय :- रीना सिंह गहरवार
पिता – अभयराज सिंह
माता – निशा सिंह
निवासी – नेहरू नगर रीवा
शिक्षा – डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत


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