वीणा वैष्णव
कांकरोली
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मेरी लेखनी हर जन ह्रदय, एक दिन छा जाएगी।
जिंदगी कब तक, तू खुद को आईने से बचाएगी।
अभी चूभ रही हूँ जिन्हें, नुकीले कांटों की तरह।
उन घावों पर, सुकुं औषधि बन वो लेप लगाएगी।
क्या हश्र होगा, जब हकीकत तेरी सामने आएगी।
चेहरा नकाब हटा, वो हकीकत रुबरू कराएगी।
तेज झंझावत से उजड़े है, बागबान ऐ गुलशन।
कर इंतजार, पतझड़ बाद बसंत बहार आएगी।
ठोकर लगेगी, जिन्होंने पांव अंजान राह बढ़ाया।
पूछ कर जो चले, मंजिल उनके करीब आएगी।
गुजरती जिंदगी, और तू रंगीनियों में भटकता रहा।
तेरी हसरतें ही, तेरा एक दिन जज्बा आजमाएगी।
सपने आंखों में बहुत, पर नींद तुझे नहीं आएगी।
दर्दे आशिया बनाया, ख्वाब में रात गुजर जाएगी।
मौत हकीकत जान, जिंदगी आसां बन जाएगी।
बची है थोड़ी, वह तो अपनों संग गुजर जाएगी।
कहे वीणा नेक राह, सफलता करीब लाएगी।
महल नहीं घर बना, जिंदगी जन्नत बन जाएगी।
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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।
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