Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गृहस्थाश्रम में पत्नी

सुरेश चन्द्र जोशी
विनोद नगर दिल्ली
********************

मनुष्य ब्रह्मचर्याश्रम के बाद विवाह संस्कार करके गृहस्थाश्रम मेंं प्रवेश करता है, गृहस्थी के लिए पत्नी मात्र कामपूर्ति के उद्देश्य से नहीं है, अपितु यह मानव को सभ्य सुसंस्कृत व संस्कारवान बनाती है। यदि यह विवाह संस्कार नहीं होता तो मानव समाज में-माँ, बहन, बेटी आदि पहचानने की शक्ति नहीं होती। सृष्टिकर्ता के दांए स्कंध से पुरुष और बांए स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति होने के कारण स्त्री को वामांगी कहा जाता है, अतेव शादी के बाद उसे पति के बांई ओर बैठाने की परंपरा है। धर्मग्रंथों में पत्नी को पति का आधा अंग कहा जाता है उसमें भी उसे वामांगी कहा जाता है, अर्थात वह पति का बांंयां भाग है, शरीर विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान ने भी पुरुष के दांए व स्त्री के बांए भाग को शुभ माना है। मनुष्य के शरीर का वांया हिस्सा खासतौर पर मस्तिष्क की रचनात्मकता का प्रतीक माना जाता है, दांयां हिस्सा कर्मप्रधान होता है बांंयां हिस्सा कला प्रधान होता है, यह भी एक वैज्ञानिक कारण है महिलाओं के लिए वामांग निर्धारण का।
स्त्री का स्वभाव वात्सल्य का होता है और किसी भी कार्य में रचनात्मकता तभी आ सकती है जब उसमें स्नेह का भाव हो, दांई ओर पुरुष होता है जो किसी कर्म के प्रति दृढता के लिए होता है, यदि क़ोई कर्म दृढता व रचनात्मकता के साथ किया जाए तो उसमें सफलता मिलनी तय है।हमारे वास्तु शास्त्र में सभी बातों के बहुत मायने (अर्थ) हैं और शास्त्रों में कही गई बातें वैज्ञानिक व तथ्यपरक होती हैं, उनमें कहा गया है कि दाम्पत्य जीवन में आपसी तालमेल के लिए पत्नी को हमेशा अपने पति के बांए भाग में ही सोना चाहिए पति को पत्नी के दांए भाग का प्रतिनिधित्व करने के कारण दांए ही सोना चाहिए जिससे दाम्पत्य जीवन की सरसता के साथ साथ पति को हृदय संबंधी आघात रोगादि न लगे या हृदयगति रुकने से मृत्यु न हो इसके कयी प्रमाण हैं।

“वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव द्विरागमे।
वामे शयनैकशय्यायां भवेज्जायै प्रियार्थिनी।।

कन्यादान, शादी, यज्ञकर्म, पूजा या फिर कोई धर्म कर्म का काम हो तो दायें भाग में बैठना चाहिए:-
“कन्यादाने विवाहे च,प्रतिष्ठा यज्ञकर्मणि।
सर्वेषु धर्मकार्येषु पत्नी दक्षिणतःस्मृता।।

ये सभी बातें संस्कारगणपति व वास्तु शास्त्र के साथ साथ श्रुतियों (वेदों) में भी वर्णित हैं और सभी का वैज्ञानिक आधार भी है। पति के बाँये अंग की स्वामिनी पत्नी वामभाग से उसके दाहिने भाग में हाथ रखती है तो बाँये भाग में स्थित हृदय सुरक्षित रहता है तथा उस दांए को स्पर्श करने से आत्मबल व दृढसंकल्प मजबूत होता है। इसके विपरीत दांए शयन करेगी तो हृदय पर दबाव पडेगा जो उसके सिंदूर के लिए घातक तो होगा ही, हृदय कमजोर भी होगा, पत्नी को कभी भी पति की तरफ पीठ करके भी शयन नहीं करना चाहिए। दिन में एक बार सायंकालीन श्रृंगार पत्नियां पति के लिए ही करती हैं अच्छी तरह मांग मेंं सिंदूर भरने से तथा यथानिर्दिष्ट संपूर्ण श्रृंगार के साथ रहते हुए हाथ भरकर काँच की चूडिय़ां पहनने से पति तथा संतानों की आयु संबंधी समस्याओं का समाधान भी बताया गया है। चूडियों की आवाज व पायल की झंकार से घर के अनेक दैविक पैतृक बाधाएं शांत होती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। उपयुक्त वस्त्राभूषण धारण करने से सौभाग्य सुरक्षित रहता है। सोने चांदी के आभूषणों का अभाव होने पर नाक व कान में पहले स्त्रियां तुलसी की लकड़ी या अन्य पूजी हुई लकडी यानि तिनके को सिंदूर की सुरक्षा के लिए धारण किया करती थी, अन्य किसी भी प्रकार के बनावटी सामान के लिए अपने शरीर को प्रतिबंधित रखती थी, अर्थात धारण नहीं किया करती थी, क्योंकि उन्होंने स्कूल कालेजों की शिक्षा नहीं ली होती थी अपितु वैदिक संस्कृति सभ्यता का ज्ञान सुनकर उसका सम्मान करते हुए अपनी जिम्मेदारी पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा निभाया करती थी।
जब पाकशालाओं में अनुचित बर्तन या सामग्री दुःखदायी है तो, नकली श्रृंगार क्या सुहाग की सुरक्षा कर सकते हैं इस बात पर पति व परिवार की सुरक्षा के लिए मनमानी करने वाली बुद्धिमान स्त्रियों को चिन्तन मेंं लानी होगी, अन्यथा बदलते हुए आधुनिक सामाजिक वातावरण में अपना सबकुछ समाप्त करनेकी उत्तरदायी स्वयं ही होंगी चाहे स्वीकार करें या न करें, मनमानी करनेवाली पत्नियाँ कभी भी अपना, अपने पति का, व बच्चों का भविष्य नहीं बना सकती हैं बर्बाद अवश्य कर सकती हैं, इतिहास, पुराण, या वैदिक उदाहरण मनमानी करनेवाली स्त्रियों के नहीं देखे गए हैं, अतेव पत्नियों को प्रकृति-बनना पसंद न भी हो आधुनिक, बनने के लिए तब भी माँ, व स्त्री बने रहने के लिए उपरोक्त वैज्ञानिक आधारों वाले नियमों का पालन करना ही होगा तभी सुहागिन व माता बनी रहेंगी। “गृहस्थाश्रमो विजयतेतराम्”।

परिचय :-सु रेश चन्द्र जोशी
शिक्षा : आचार्य, बीएड टीजीटी (संस्कृत) दिल्ली प्रशासन
निवासी : विनोद नगर दिल्ली)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…..🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *