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भीड़ में भी इतनी तन्हाई क्यों है

राकेश कुमार साह
अण्डाल, (पश्चिम बंगाल)

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आज भीड़ मे भी इतनी तनहाई क्यों है
यूँ अपनो मे ही इतनी रुसवाई क्यों है।
तन्हा था मैं, पर फिर भी जो साथ होती थी मेरी
वो परछाई भी आज यूँ हरजाई क्यों है।
आज भीड़ मे भी इतनी तनहाई क्यों है।।

माना की आज वो नहीं है साथ मेरे
उसे फिर से पाने का कोई रास्ता नहीं है हाथ मेरे।
पर दिल मे अब भी तो उसी की याद है
जुड़े हैं सारे उसी के साथ जज़्बात मेरे।
पर वो तो मुझे भी भूल जायेगी
जैसे भुल गई हर एक बात मेरे।
माना की आज वो नही साथ मेरे।।

कोई बता दे मुझे साथ रह कर भी
चाँद तारों मे यूँ जुदाई क्यों है ।
कुदरत ने ये मोहब्बत, इस बेदर्द जहाँ मे बनाई क्यों है।
जब बिछड़ना ही है मुकाम इसका
तो यूँ दिल से दिल की डोर बंधाई क्यों है।
आज भीड़ मे भी इतनी तनहाई क्यों है
यूँ अपनो मे ही रुसवाई क्यों है।
तन्हा था मैं पर फिर भी जो साथ होती थी मेरी
वो परछाई भी आज हरजाई क्यों है।
यूँ भीड़ मे भी इतनी तनहाई क्यों है।।

 

परिचय :राकेश कुमार साह
निवासी : अण्डाल, पश्चिम बंगाल
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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