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हर रोज क्यों

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शाहरुख मोईन

हर रोज क्यों लोग शादाब सजर काटते हैं,
 इस दौर में लोग घर में ही घर काटते हैं।
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बदजुबानो का बढ़ गया रुतबा भी इस क़दर,
 भाई भी अब सगे भाई का सर काटते है।
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अब तो उम्मीद मत रख मजबुन ऐ अख़बार से,
झूठी अफ़वाह फैलाने में अच्छी ख़बर काटते हैं।
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दौरे मुफलिसी में जो बिकते हैं शफ्फाफ बदन,
 शहंशाहों को तो लालोओ गौहर काटते हैं।
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मुश्किल से दिन रात जागकर काटते हैं,
 प्रदेश में कैसे हम वक्त अहले नज़र काटते हैं।
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सैलाब का है खतरा तमाम बस्तियों को मगर,
 बहती नदी से लोग अक्सर नहर काटते हैं।
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क्यों समझे हैं हमेशा दुनियां हमको कमतर,
 अपने हुनर से हम ज़हर से ज़हर काटते हैं।
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अपने हालात पर अमीरे शहर भी तमाम रात जागकर काटते हैं,
 समुंद्र अपनी कद में है दरिया ही घर काटते हैं।
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कुदरत की कारीगरी ने सबका भरम तोरा है,
लोहे से लोहा हम पत्थर से पत्थर काटते हैं।
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लेखिक परिचय :-
नाम – शाहरुख मोईन अररिया बिहार


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