विशाल कुमार महतो
राजापुर (गोपालगंज)
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यह कविता समर्पित है। देश के दो लाल (जवान) शहिद किशन लाल, और शहीद देव कुमार, जी को रक्षाबंधन के ठीक कुछ ही दिन पहले शहादत को समर्पित हो गए। इन्हें शत शत नमन है। 🙏🙏
दिलों में दीप खुशियों की जलाए बैठी थी,,,
आएगा मेरा भईया आस लगाए बैठी थी,,
पागल सी बनके बहना लोग से पूछे बार बार,,
राखी पे क्यों ना आये, मेरे भईया अबकी बार।।
फूलों की थाली हाथों में सजाएं बैठी थी,,
चंदन, मिठाई, राखी सब लियाए बैठी थी,,
बहन का भी अब सब्र का बांध टूट रहा था,,
आँखों की आंसू बनके दरिया फुट रहा था,,
क्यों भूल गया है तू अब माँ-बाबुल का दुलार
राखी पे क्यों ना आये, मेरे भईया अबकी बार।।
आँगन बैठी रोये बहना भाई के लिए
श्रद्धा से राखी लाई हूँ कलाई के लिए
सुनो ना भईया मुझे तुम इतना सताओ ना
कर लूंगी थोड़ा इंतजार जल्दी से आओ ना
ना चाहिए हमें मोतियों की माला और हार,,
राखी पे क्यों ना आये, मेरे भईया अबकी बार।।
भईया तुझसे मैं ना करूंगी अब तो कोई जिद,,
लेकिन पता नही था भाई हो गया शहिद,,
इतने दरवाजे पे आ गई भईया की लाश,,
रोते हुवे निराश, और न कर रही विश्वास,,
मुख से हटा तिरंगा, न रुकी आंसुओ की धार,,
राखी पे क्यों ना आये, मेरे भईया अबकी बार।।
निवासी : राजापुर (गोपालगंज)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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