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लाशों से सजाते क्यों धरती?

रामकेश यादव
काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र)
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लाशों से सजाते क्यों धरती,
मानवता से घबराते हो।
सब कुछ नहीं पद, सत्ता पैसा,
क्यों मजलूमों को रुलाते हो?

इतनी बर्बरता ठीक नहीं,
जिल्लत का जहर पिलाते हो।
इस नश्वर जग में आखिर क्यों,
अपनों पे सितम तू ढाते हो?

उस उपवन के हो तू माली,
क्यों पहचान मिटाते हो।
दफ़न करो तू अंधकार को,
क्यों कांटे के आँसू बोते हो?

चीख, दर्द, चीत्कार से दुनिया,
निशि-दिन घायल होती है।
शक्ति प्रदर्शन देख-देखकर,
फिज़ा वहाँ की रोती है।

सिर्फ विकास की बात करो,
तब सुख के बादल बरसेंगे।
मोहब्बत की किरनें झूमेंगी,
ज़ब सर न किसी के उतरेंगे।

अमनो चैन की उस दुनिया में,
तब मानवता करवट लेगी।
फांकों के दिन टल जायेंगे,
खुशहाली तब थिरकेगी।

मत रौंदों, न मसलों इज्जत,
अब ना तू नर-संहार करो।
अपने पथ से भटके लोगों,
एक दूजे से प्यार करो।

परिचय :- रामकेश यादव
निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र)
शिक्षा : (एम.ए., बी. एड)
लेखन विधा : कविता
सम्प्रति : पूर्व (रिटायर) मनपा शिक्षक बृहन्नमुम्बई महानगरपालिका, मुंबई, (महाराष्ट्र)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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