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स्त्री नियमो की सीमा को क्यों लांघ न पाए?

गरिमा खंडेलवाल
उदयपुर (राजस्थान)
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अतीत के विकृत संकल्पो,
की मिथ्या परछाई ने,
उन्नति के पथ पर
रोडे अटकाए,
जाने क्यों ?
स्त्री थोथे नियमो की
सीमा को
लांघ ना पाए।

ब्रह्मांड में जो
कुछ भी चलायमान,
उत्पत्ति निर्माण में
स्त्री का योगदान
उपलब्धियों पर
हीन दृष्टि पाए
जाने क्यों ? स्त्री
अपनी शक्ति को,
पहचान न पाए।

शून्य जगत
का हर कोना
गति पाता
स्त्री के तप से
वही जगत से
हेय दृष्टि पाए
जाने क्यों ? स्त्री
अभिमानियों के
मिथ्या दम को
मिटाना चाह ना पाए।

नियम वर्जनाओ की
बेड़ियों मे भी
सृजन व पालन
की ताकत,
मानस पटल पर
भय शंका बढ़ाएं,
जाने क्यों ? स्त्री
अपनी पीड़ा को,
बतला न पाए।

जग स्त्री उपलब्धियों
को पचाना पाए,
कमी निकालने से
बाज ना आए,
टूटता स्त्री मनोबल
षड्यंत्रों में फंस जाएं,
जाने क्यों ? स्त्री
अपनी विवशता को
समझ न पाए।

प्रश्न गरिमा का
प्राणी मात्र से
क्यों सृजन शक्ति के
मत्सर (जलन)
अवहास की
आदत अपनाएं
जाने क्यों ?
संसार की सृजन शक्ति
सम्मान न पाए।

परिचय :- गरिमा खंडेलवाल
निवासी : उदयपुर (राजस्थान)
संप्रति : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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