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सफेद दाग़

जितेंद्र शिवहरे
महू, इंदौर

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दीपक ने आज भी कुछ नहीं कहा। हमेशा की तरह वह आज भी हंसता और हंसाता रहा। शाम के चार कब बजे पता ही नही चला। स्कूल की छुट्टी का समय हो चूका था। अवन्तिका बुझे मन से अपना सामान समटने लगी। मगर वह निराश नहीं थी। उसे विश्वास था कि दीपक आज अपने दिल की बात बता देगा। वह अवन्तिका से मिला भी किन्तु उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। दीपक ने अभी छः माह पुर्व ही स्कूल ज्वाइन किया था। यहां तीस से अधिक शिक्षकों का स्टाॅफ था। दीपक को अनुभव और पद के अनुरूप अपनी लाॅबी की शिक्षकों में सम्मिलित होने हेतु आमंत्रण मिला। दीपक इसके लिये कतई तैयार नहीं था। वह मिलनसार था। उसकी प्रत्येक गुट में घुसपैठ थी। सभी शिक्षक उसे पसंद करते। उससे किसी शिक्षक का कभी मनमुटाव नहीं हुआ। दीपक सर्वप्रिय था। अवन्तिका के साथ भेदभाव का व्यवहार देखकर दीपक को अप्रसन्नता हुई। अवन्तिका अपने सफेद दाग़ छुपा रही थी। दीपक को समझते देर न लगी। लंच हो चूका था। उसने अपना टिफिन उठाया और अवन्तिका की टेबल के पास जा पहुंचा। अन्य शिक्षक यह देखकर हतप्रद थे।
“दिपक! तुम पढ़े लिखे होकर अनपढ़ जैसी हरकते कर रहे हो। अवन्तिका संक्रमण की चपेट में है।” कुछ दुरी पर अन्य शिक्षकों के संग बैठी अनुराधा पंढारकर बोली।
दीपक कुछ न बोला। उसने अपना टीफीन खोलते हुये अवन्तिका से कहा- “अवन्तिका! आप एन्टीसेप्टीक मेडीसिन लेती है?”
“जी हां।” अवन्तिका बोली।
“आप अपना उचित उपचार करवा रही है?” दीपक ने अगला प्रश्न पुछा।
“जी हां।” अवन्तिका ने कहा।
“आप अपनी स्कीन अच्छी तरह से डेटाॅल आदि लिक्विड से रोजाना साफ करती है न?” दीपक ने पुनः पुछा।
“जी हां।” अवन्तिका बोली।
“सुना अनुराधा मैडम जी आपने! अब बताईये। पढ़ा लिखा कौन है? और अनपढ़ कौन है?” दीपक ने अनुराधा की बोलती बंद कर दी थी। अवन्तिका के पक्ष में स्कूल का सबसे चर्चित और आकर्षक युवक खड़ा था। अपने नाम को किसी अन्य पुरूष के मुख से सुनकर अवन्तिका भाव-विभोर थी। अब तक उसे ‘अवन्तिका जी’ या ‘मैडम’ ही संबोधन सुनने को मिला था। दीपक ने अवन्तिका को बिना किसी औपचारिकता के सीधे अवन्तिका नाम से संबोधित कर अपनत्व प्रदान किया था। दीपक अब प्रतिदिन अवन्तिका के साथ ही लंच करता। वह अवन्तिका के हृदय में प्रवेश कर चूका था। सफेद दागों की वजह से अवन्तिका को वैवाहिक सुख अप्राप्य था। उससे विवाह करने के लिये कोई भी युवक तैयार नहीं था। अवन्तिका की आयु भी कुछ अधिक हो चली थी। दीपक भी अविवाहित था। मगर दीपक जैसा होनहार और आकर्षक नवयुवक अवन्तिका को क्यों चूनेगा? यही सोचकर अवन्तिका, दीपक से अपने मन की बात कहने में डर रही थी। दीपक ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति से अवन्तिका का हृदय जीत लिया था। उसका कहना था कि कल हमारे हाथ में नही है किन्तु आज का समय हमारी मुठ्ठी में है। अतएव जो हमारा मन कहे और अगर वह उचित भी है तब उसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। आज अगर शरीर सुन्दर है तो कल ढलती आयु के साथ कुरूप भी हो जायेगा। इसलिए आन्तरिक सौन्दर्य भी देखा जाना चाहिये। यही नहीं ! दीपक के लिए आन्तरिक प्रेम भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। इन्हीं कारणों से प्रभावित होकर अवन्तिका के मन में आशा की किरण जागी थी। धीरे-धीरे उसने दीपक से बात करने की हिम्मत जुटा ही ली। स्टाॅफ रूम में आजकल इसी बात की चर्चा हो रही थी। क्या दीपक, अवन्तिका को स्वीकार करेगा? या अन्य पुरूषों की भांति वह भी उसका हृदय तोड़ देगा?
“अवन्तिका! मुझे खुशी है कि तुमने अपने हृदय की बात बताई। किन्तु मैं तुमसे विवाह करने के लिये तैयार नहीं हूं।” दीपक ने कहा। स्टाॅफ रूम में शिक्षक दोनों के बीच की बातों का साधा प्रसारण देख रहे थे।
“कोई बात नहीं दीपक। आपकी असहमती मुझे स्वीकार है। मैंने अपने हृदय की बात आपसे कह दी। मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात है।” अवन्तिका कहकर जाने लगी।
“रूको अवन्तिका!” दिपक ने कहा। अवन्तिका पुनः पलट गयी। अन्य शिक्षक अब दीपक के अगले कदम पर अपनी पैनी नज़र गढ़ाये हुये थे।
“तुमसे पहले अगर मैं अपने दिल की बात कहता तब शायद हो सकता था अन्य लोग तुम पर इसे मेरी मेहरबानी समझते।” दीपक बोला। अवन्तिका हैरत में थी।
“हां अवन्तिका! मैं भी तुमसे प्रेम करता हूं। बस पहले तुम्हारे मुख से सुनना चाहता था।” दीपक ने कहा। अवन्तिका की आंखें नम हो गयी। दीपक ने उसे वास्तविक प्रेम का उपहार दिया था। जिसके लिए बहुत से लोग आजीवन वंचित रहते है।

परिचय :-  जितेंद्र शिवहरे आपकी आयु – ३४ वर्ष है, इन्दिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर निवासी जितेंद्र जी शा. प्रा. वि. सुरतिपुरा चोरल महू में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ होने के साथ साथ मंचीय कवि भी हैं, आपने कई प्रतिष्ठित मंचों पर कविता पाठ किया है।


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