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जहाँ तुम बिराजे हो

आशीष पाठक “अटल”
मधुबनी बिहार

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हिमालय की शिखर चोटी,
जहां शिव तुम बिराजे हो।

शिखर पर चंद्र शोभित है,
जटा से गंगा की उद्गम है।

धूमल काला तेरा काया,
जो भस्मो से अलंकृत है।

मृगो की छाल लपेटे शम्भु,
तुम श्मशान विचरते हो।

इस विचरण में दानी तुम,
मसानी शिव कहलाते हो।

हम तेरे चरणों के सेवक हैं,
तुम औघड़ दानी शंभू हो।

तुम जग करता और धरता है,
तुम ही तो सर्वस्व ज्ञानी हो।

काल का छाया है सृष्टि पे,
तुम काल का भी स्वामी हो।

काल पर जिनका का नियंत्रण है,
वह महाकालेश्वर उज्जैनी हो!!! ……

परिचय :- मधुबनी बिहार के निवासी आशीष पाठक “अटल” भोपाल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। साथ-साथ हिंदी और मैथिली में लेखन पठन, का भी कार्य कर रहे हैं। आपकी कुछ कविता सहायक लेखक के तौर पर प्रकाशित हुई हैं।
आपके विचार : जिसने मुझे दिया उसे मैं क्या दे सकता हूँ, लेकिन जो भी सेवा मुझ से हो सके मैं हिन्दी रूपी माँ को अपना जीवन देना चाहता हूँ।
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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