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जहाँ पुकारोगी मैं मिलूंगा

भानु प्रताप मौर्य ‘अंश’
बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)

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कहा था तुमनें मैं हर जगह हूँ,
जहाँ पुकारोगी मैं मिलूँगा।
मैं हर जगह हूँ धरा गगन में,
जहाँ कहोगी वहीं मिलूँगा।।
हुआ है क्या अब कहाँ हो मोहन,
सजल नयन हैं बुला रही हूँ।
धरा गगन में अगर कहीं हो,
पता बता दो मैं आ रही हूँ।।(१)

खिली जो पाती है हमने मोहन,
वो क्या अभी तक मिली नहीं है।
अगर सदेंशे की मेरी पाती,
मिली है तुमनें पढी नहीं है।।
सिखाने आये है हमको ऊधौ,
की ब्रम्ह में मन को हम रमाये।
लिखा था मैंने कब आओगे तुम
न आके हो तुम कि से पठाये।।(२)

मुझे कहीं भूलें हो कन्हैया,
मैं उन्हें कुछ नहीं कहूंगी।
तुम्हें जो मोहन है याद राधे,
तो मैं तेरे बिन न जी सकूंगी।।
है पीर मन में उठी जो कान्हा,
वो दूर होगी तुम्हीं हरोगे।
है द्वारका धीश हाथ तेरे,
जो चहोगे वही करोगे।।(३)

न आओगे लैटकर के वापस,
न जाने देती जो जान जाती।
बडे चतुर हो यसोदा नंदन,
भला तुम्हें कैसे रोक पाती।।
वो याद आते है दिन बहुत अब,
चोरी से मिलना तेरा कन्हैया।
मैं अब सरे आम हूँ बुलाती,
कहाँ हो तुम वंशी के बजैया।।(४)

न सूझता नयनों से है मोहन,
तेरी ही सूरत झलक रही है।
बची है कुछ पल की मेरी सांसे,
तेरी चाह में धडक रही है।।
मिल न सके इस जन्म में हम
तुम गिला नही फिर कहीं मिलूँगी।
है वादा तुमसे मेरा ये मोहन,
मैं हर जन्म में तेरी रहूँगी।।

 

परिचय :- भानु प्रताप मौर्य ‘अंश’
पिता : श्री मनोज कुमार मौर्य
निवासी : जमोलिया, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।

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