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कहाँ खो गई गोधूलि

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संजय वर्मा “दॄष्टि”

शाम को उड़ती धूल में

देखता आकाश की लालिमा
सूरज की धुँधली छवि
सूरज लेता शाम को सबसे अलविदा
गाय के गले में बंधी घंटिया
सूरज की करती हो शाम की आरती
गोधूलि की धूल बन जाती गुलाल
धरा से आकाश को कर देती गुलाबी
नित्य ये पूजन चला करता
वर्षा ऋतु  धूल और सूरज छिप जाते
देव कर जाते शयन
ये गाँव की कहानी
शहरों में धूल कहाँ औऱ सूरज भी कहाँ
सीमेंट की ऊंची बिल्डिंग
सड़के डामर की
कहाँ गाय के गले मे आरती की घँटी
गोधूलि का महत्व गाँव मे होता
शहरों में तो काऊ महज पढ़ाया जाता
गाँव प्रकृति से सजा इसलिए तो
सुंदर है
सोचता हूँ
गॉव जाकर प्रकृती को पुनःपहचानू।

परिचय :- नाम :- संजय वर्मा “दॄष्टि” पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ – मई -१९६२ (उज्जैन )
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग )
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक “, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५ , अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच


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