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लोग जब सिर पे बिठाने लग गए

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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लोग जब सिर पे बिठाने लग गए।
भावनाएं हम भुनाने लग गए।।
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बैठ जब कमजोर कंधों पर गए।
रोज ही उत्सव मनाने लग गए।।
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जो हमें बर्बाद करने के लिए।
आए थे वो सब ठिकाने लग गए।।
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जो छिड़कते थे नमक वे लोग भी।
घांव पर मरहम लगाने लग गए।।
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बैठ चरणों में गए, काबिल हुए।
लोग वो ईनाम पाने लग गए।।
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नेकियाँ कर वो छपे अखबार में।
लोग कुछ नजरें झुकाने लग गए।।
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झूठ अपना सच बना पाए न हम।
अब तलक कितने बहाने लग गए।।
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गांठ रिश्तो में पड़ी “अनंत “ऐसी।
खुल न पाई है जमाने लग गए।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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