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कर्म में शर्म कैसी ?

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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एक छोटी सी चीटी भी,
करती रहती कर्म यहाँ
हाथी को भी मेहनत करने में,
आती नहीं है शर्म यहाँ
याचक भी जी लेता है,
करते-करते कर्म यहाँ
राजा को भी कभी न आई,
राजपाट में शर्म यहाँ
नन्ही चिडिया दानों के लिए,
करती रहती कर्म यहाँ
जंगल का राजा शिकार में,
नहीं किया कभी शर्म यहाँ
इस दुनिया मे भगवान ने,
आकर किया कर्म यहाँ
फिर इन्सान को आती है,
क्यो करने में शर्म यहाँ
सासें भी तब तक चलती है,
हृदय करे जब कर्म यहां
निर्जीव हो जायेगी काया,
धडकनें करे जो शर्म यहाँ
जीवन का है सार यही कि,
करते रहो कर्म यहाँ
मानवता से बढ़ कर दूजा,
“सुकून” नहीं है कोई धर्म यहाँ
स्वर्ग नरक का खेला कह कर,
छलते रहते कर्म यहाँ
यहीं किया है यहीं मिलेगा,
जीवन का है यही मर्म यहाँ

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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