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ये कैसा तूफान

रीमा ठाकुर
झाबुआ (मध्यप्रदेश)
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ये कैसी विवशता है, ये कैसा तूफान है,
कैसे दाँव पर लगा रहा, इन्साँ को इँसान है।

सोचो जरा समझो जरा, संयम से कुछ काम लो,
सब धरा रह जायेगा, वो मान हो अपमान है।

कर्मपथ जटिल सही, उसको अंगीकार कर,
भुजायें बलिष्ट है, बेकसूर पर न वार कर!

लक्ष्मीबाई बनो मगर, उनसा कार्य भी करों.
उनको नमन मै करू, उन्है नमन तुम भी करो।

ऐसी कोई न जिद करो, अहंकार को बढने न दो”
जैसी हटेगी धुँध वो, शायद न नजर उठा सको!

क्षमा से बढकर, सृष्टि मे कुछ भी बडा है न होगा कभी”
कुछ पल के बदले के लिऐं, खुद लिऐ दुआ करो.!!!

परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर
निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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