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यह कैसी आजादी है

दीवान सिंह भुगवाड़े
बड़वानी (मध्यप्रदेश)

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सीमा पर सिपाही गोलियां झेल रहा है
देश में नागरिक समाज-समाज खेल रहा है
इस महान देश में,यह हो क्या रहा है।
यह कैसी आजादी है।

किसान गरीबी से तड़प रहे है
मजदूर रोजगार के लिए तरस रहे है
देश के युवा बेरोजगार घुम रहे हैं
नसीब नहीं दो वक्त की रोटी,खुदखुशी कर रहे है।
यह कैसी आजादी है।

बेटियाँ देश की अकेली सफर करने से डरती है
यदि रात में गलती से भी चली जाती है
तो वह लौटकर कभी नहीं आ पाती है।
यह कैसी आजादी है।

अस्पताल तो सैकड़ों यहां है
मगर स्वास्थ्य का कोई वजूद नहीं है
सड़कों पर रोगियों की, कई जानें जाती है।
यह कैसी आजादी है।

मुल्क के लोग बड़ी चाह से जिसे चुनते है
वही तो अपना रुख बदल लेते हैं
सरकारें बदलती है, योजनाएं वहीं है
विकास की किसी में,जगी भावनाएं नहीं है।
यह कैसी आजादी है।

आस जगी थी,सदियों की गुलामी के बाद
एक ज्योत जली थी, कई काली रातों के बाद
मगर मुसीबतें खत्म नहीं हुई है “दिवान”
वतन की आबादी की आजादी के बाद।
यह कैसी आजादी है।

परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े
निवासी : बड़वानी (म.प्र.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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