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क्या करें हम

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

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दहकती है पीर की
ज्वाला यहां हर दम,
बताओ क्या करें हम।।

सर्जना के पंख पर
उड़ते मकानों की
खिड़कियों से झांकते
सपने सयाने,

किन्तु कुत्सित मानसिकता
के अंधेरों की
स्याह परछाईं
लगी उनको डराने;

चीरते हैं तीर
अपने तरकशों के दिल,
बताओ क्या करें हम?

दहकती है
पीर की ज्वाला यहां हर दम
बताओ क्या करें हम।।

सर्व नाशी सोच की हठ
जम गई जैसे-
पत्थरों पर काइयों की
मूक परतें,

आत्महत्या के लिए
तैयार बैठी हैं
पीढ़ियों की ज़िद लिए
दो टूक शर्तें;

जब धड़कता ही नहीं
सीने में इनके दिल,
बताओ क्या करें हम।

दहकती है
पीर की ज्वाला यहां
हर दम,
बताओ क्या करें हम।।

किस तरह जीना हमें है,
कौन करता है
प्यार,
इतना जानवर भी जानते हैं,

आस्तीनों के मगर ये सांप
पी कर दूध,
सिर्फ डसना
और डसना जानते हैं;

तोड़कर बिषदन्त इनके
सिर कुचलने के अलावा
फिर,
बताओ क्या करें हम।

दहकती है
क्रोध की ज्वाला यहां
हर दम,
बताओ क्या करें हम।।

परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है।


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