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अपना लक पहन कर चलों

विश्वनाथ शिरढोणकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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मेरे बदन से मेरी कमीज किसी ने अलग कर ली। मेरी सीट के पीछे बैठे व्यक्ति ने यह कारनामा कैची से बड़ी खूबसूरती से किया। मै बस में झपकी ले रहा था। वह शरारती यही पर नहीं रुका, उसने उसी अंदाज में मेरी बनियान के भी टुकड़े करके उसे भी मेरे बदन से अलग कर दिया। न जाने कहाँ जा रहा था मैं। और क्यों जा रहा था? किसी मंजिल की तलाश थी या मंजिल मुझे अपनी ओर ले जा रही थी? शुक्र है कि वह मेरा पाजामा नहीं उतार पाया। मेरी गहरी नींद की मुझे गहरी कीमत चुकानी पड़ी। माँ हमेशा कहती थी, ‘बेटा सफ़र में सावधान रहना चाहिए’ पर सावधान रहने का यह मतलब तो नहीं कि सोया ही ना जाय? और फिर बदन से कोई कपडे उतार ले यह तो कल्पना से परे ही है।
उसने चुराया कुछ नहीं पर उसकी शरारत मुझे महँगी ही पड़ने वाली थी। नीद में गाफिल लोग मालूम नहीं क्या क्या गवाते है? ‘जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है ‘ माँ की मुझे यह बात याद है। पर माँ की बताई यह कहावत मुझे जागने के बाद याद आयी। मुझे जाने किस अनजान जगह पर यह कह कर उतार दिया कि मुझे यही उतरना था या कि मेरे पास यही तक का टिकिट था। रात्रि के मध्य प्रहर अलसाई नींद में आँखे मलते हुए एक सुनसान सी जगह पर मै खड़ा था। मुर्गे ने भी अभी बाग़ नहीं दी थी। सूरज जाने पृथ्वी के किस भाग पर अभी आसमान से अंगारे बरसा रहा था।
थोड़ी देर बाद मेरी समझ में आया कि मेरे बदन पर कपडे ही नहीं है। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। वैसे मेरे पास सामान कुछ भी नहीं था, बस थे थोड़े से रुपये। कुछ दिनों के गुजारे के लिए काफी थे। माँ हमेशा कहती थी, ‘सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं’ और उस पल की जरुरत के लिए मेरे पास काफी रुपये थे। अर्थात मुझे एक बनियान की सख्त जरुरत थी ।
मुझे क्या करना है और कहाँ जाना है अब मेरे सामने यह भी एक प्रश्न चिन्ह था। बनियान की जरुरत तो तन ढकने के लिए थी पर बालों से भरी मेरी खुली छाती छुपाने के लिए भी और मुझे शर्मसार होने से बचाने के लिए भी बनियान मेरी सबसे प्राथमिक जरुरत बन कर मेरे सामने खड़ी थी । मुझे कुछ तो करना ही था । माँ की याद आयी, माँ कहती थी ‘ बेटा कुछ न सूझे तो पहला कदम किसी भी दिशा में उठाओ अपने आप यह ज्ञात हो जाता है कि यह कौन सी दिशा है । ‘ और सचमुच मेरा पहला कदम अनजान दिशा की ओर बढ़ गया । उस रात के तिसरे प्रहर के बाद अनजान दिशा में मैं बढता गया । थोड़ी देर बाद दूर मुझे अलाव सा जलता दिखाई दिया । सही दिशा थी , सही रास्ता था , सही सफ़र था या सही मंजिल की ओर था इन सब बातों से अनभिज्ञ मै प्रकाश की और बढता चला गया ।
वहां जाकर देखा जलते हुए अलाव को घेरे कुछ वृद्ध लोग उघाड़े बदन चिलम फूंक रहे थे । उनमे से एक वृद्ध ने मेरी ओर देखा । मेरी नजर में उसे शायद याचना दिखायी दी । उसने मुझसे पूछा , ‘ क्या चाहिए बेटा ? ‘
थोड़ी देर मै अनमना सा उन सबकी ओर देख रहा था । जाड़े के दिन और ऊपर से अल सुबह का सर्द कोहरा और ठंडी ओस । मै कपकपा रहा था। पर माँ की बात मुझे याद आयी । माँ कहती थी बेटा कभी भीख नहीं मांगना । अत: मैं खामोश ही रहा ।
‘ तुम्हे बनियान चाहियें ?’ उस वृद्ध ने पूछा ।
-मुझे आश्चर्य हुआ। इसे कैसे पता? तभी अचानक वह वृद्ध अपने साथियों से बोला ,
‘ इसे बनियान चाहियें । ‘
-सब मेरे पास आए । उस वृद्ध ने अपने झोले में से एक रंगबिरंगी खूबसूरत , मन मोहक पक्षियों के विभिन्न पंखों से सजी बनियान निकाली और अपने हाथों से मुझे पहनायी । उस पंखों वाली सुन्दर बनियान से ढेर सारी ऊब मुझे अनुभव हुई । मेरी बालों से भरी नंगी छाती ढक गयी थी । अब इस नंगी दुनियाँ के सामने मेरी नंगी छाती के कारण मुझे शर्मसार नहीं होना पड़ेगा । मै खुश था । मैंने उन सभी को नमस्कार किया , कहा ‘ आपका उपकार मै कभी नहीं भूलूंगा । आपका धन्यवाद । ‘
-उस वृद्ध ने कहा, ‘ खुश रहो । पर बेटा कपडे तन ढंकने के लियें भले काफी हों, लाज ढकने के लियें काफी नहीं । ‘ मुझे फिर आश्चर्य हुआ । माँ भी यही कहती थी और मैं भी माँ का यही कहाँ सोच रहा था । पर मेरे मन की हर बात इसे कैसे पता पड़ रही है । वह फिर बोला, ‘अब तुम सोच रहे होगे कहाँ जाऊं? ‘ बिलकुल सही।कौन है यह बूढ़ा?
कोई भी हो, मेरा कौन है ? मैंने स्वीकृति में सिर्फ गर्दन हिलायीं । उसने एक नजर मेरी और डाली , ‘ जिधर से आये हो उधर ही वापस जाओं।’
मै उलटे पावों उलटी दिशा मुड़ गया । चलता रहा चलता रहा, पंखों वाली बनियान की ऊब मुझे भा रही थी । अभी मुर्गे ने बाग़ नहीं दी थी और सूरज की लाली भी आसमान में छाने में शायद देर थी । और मै अभी भी रुका नहीं था । इस रात के तीसरे पहर अब मुझे आते जाते लोग दिखने लगे । लेकिन क्या आश्चर्य कि सभी सिर्फ एक लंगोटी में उघाड़े बदन थे और मेरी ओर अजीब अजीब नज़रों से देख रहे थे । मुझे देख कर जाने क्या सोच रहे होंगे ?
-घने जंगलों में आखिर एक बड़े भारी बरगद के पेड़ के नीचे मै एक पत्थर पर बैठ गया । बरगद का पेड़ भी अजीब है । जड़ों से निकल कर स्वेच्छा से जड़ों में समा जाता है । और फिर जड़ों से ही निकल पड़ता है । आत्मा परमात्मा का खेल सबकों इसी जहाँ में दिखा देता है । आदमी को इस खेल के लियें मरना पड़ता है । पर मैंने तो अपनी माँ को उसकी पड़ोसन से कहते सुना था , ‘ जन्म का पता नहीं , उसे तो रोज ही मरना पड़ता है । कभी रसोई में , कभी आंगन में , कभी दहलीज पर , कभी बिस्तरे पर , कभी चौराहे पर , कभी रेले ठेले में तो कभी मेले में । ‘ पर पिछली बार की मौत ने उसे दुबारा मरने का मौका ही नहीं दिया । जला दिया लोगों ने उसे । कहने लगे , ‘ तेरी माँ नहीं है लाश है यह । माँ जब कभी गुस्से में होती थी तो चिल्लाती थी मेरे ऊपर , ‘ तेरे बाप ने हम दोनों को मरा समझ लिया हैं । मै कोई बरगद का पेड़ नहीं जो तुझे घनी और उबदार छाव देती रहूँ । मेरी जड़े तेरे बाप के जड़ों जैसी खानदानी नहीं हैं । जिन्हे जड़ों का ही आसरा हो वों कितनी भी ऊंचाई पर जा सकते है । ‘
-मेरी नींद नहीं हुई थी मै वही उस बरगद की छाव में सो गया । -जमीन का बिछौना था और मैं आसमान को ओढ़े हुए जाने कब तक गहरी नींद सोता रहा और मुर्गे के बाग़ देने से मेरी नींद खुल गयी । सूरज की लाली भी छाने लगी । बच्चे ,बूढ़े ,औरते सब मुझे घेरे खड़े थे । मैंने नजर घुमाई , औरतों ने भी ऊपर कुछ नहीं पहना था । और उनकी साड़ी भी आधी अधूरी घुटनों से भी ऊपर तक थी और जांघें भी दिखाई दे रही थी । मुझे लगा कि मै किसी घने जंगलों में किसी आदिवासी गांव में आ गया हूँ । मैंने उनकी और देखा , वे क्या बोल रहे थे मेरी समझ में नहीं आया । उनकी भाषा मेरे लिए अनजान थी ।

-अचानक बच्चे मेरे ऊपर लपक पड़े । उन्हें मेरी बनियान पर लगे पंख चाहिए थे । बच्चे जैसे ही मेरे बनियान को हाथ लगाते , पंख अपने आप झर रहे थे । बच्चे मेरी बनियान पर हाथ फेरते रहे और पंख झरते रहे । आखिर मै फिर उघाड़ा हो गया । मेरी नंगी छाती देखकर उन सब लोगों ने तालियां बजाकर , चिल्लाकर अपना आनंद और उल्लास व्यक्त किया । शायद उन्होंने मुझे अपने जैसा कर लिया था । पर मै उनके जैसा नहीं था । सिर्फ बनियान पहनने न पहनने से आदमी आदमी में फर्क कैसे हो सकता है ? पर यह बात उनको कैसे समझाता ? मुझे प्यास लगी थी । पर यह बात भी उन्हें समझाना मेरे लिए सम्भव नहीं था । आखिर मैं वहाँ से चल पड़ा । थोड़ी देर चलने के बाद अब घने जंगल से मैं बाहर आ चुका था । अब सूरज अपनी रौशनी मुक्त हस्त से लुटा रहा था . माँ कहती थी कि , ‘ सूरज के भाग में जलना ही लिखा है । ‘ यही बात औरतों के लिए भी सच हैं । लेकिन जलने से रौशनी होती हैं यह तो अजूबा ही है ? माँ तमाम उम्र जलती रही , पर दूर दूर तक रौशनी की एक किरण भी नहीं बिखेर सकी . माँ बताती हैं कि बाप ने उसके जीवन में अँधेरा ही अँधेरा कर दिया था . कमाल ही हैं कोई जल कर रौशनी बिखेरता हैं तो कोई जल कर बुझता रहता हैं और जीवन में तमाम उम्र अँधेरा छा जाता है । शायद विरोधाभास और विसंगति जीवन का एक अहम् किरदार माना जाना चाहिए ।
चलते चलते शायद मैं एक मैं गाँव आ गया था । गाँव के एक बड़ी सी खुली जगह पर शायद हाट लगने की तैयारियां चल रही थी । मैंने सोचा कि मैं पहले कुछ खा-पी लूँ फिर बनियान खरीदूंगा ।
-हाट बाजार में हर एक दुकान पर गया पर बनियान कही नहीं थी । कमीज भी नहीं थी ।
हाट बाजार में भी सब उघाड़े ही घूम रहे थे । पर बाजार में बाहर के लोग अपना सामान बेचने आये थे इस लिए मुझे उनसे बात करना आसान था । सभी कपड़ों की दुकानो पर , ‘ अपना लक पहन कर चलो का सनी देओल वाला चित्र टंगा था ।यह देख कर मैंने पूछा ,” भैया , बनियान मिलेगी क्या ?”
-उसने मेरी ओर अचरज से देखा । मुझे ऊपर से निचे तक घूर कर देखा । इस तरह उसकी भाषा में बात करता देख उसे आश्चर्य हो रहा था ।
‘ बनियान नहीं है । यहाँ कोई नहीं पहनता । ‘
‘ कमीज होगी ?’
‘ नहीं कमीज भी नहीं है । ‘
मै आगे बढ़ा । सोचा दूसरे दुकानदार के पास मिलेगी ।
‘ भैया बनियान मिलेगी क्या ? ”
-उसने भी मेरी तरफ आश्चर्य से देखा । बोला , ” नहीं है । यहाँ कोई नहीं पहनता , तुम्हे मालूम नहीं है क्या ?” फिर खुद ही जवाब दिया , ‘ नए लगते हो इस इलाके में ?’
मैंने सर हिला कर जवाब दिया और पूछा , ” पर क्यों नहीं पहनते ? और मुझे तो इसी इलाके में उन बुजुर्गो ने पक्षियों के पंखों वाली बनियान बड़े प्रेम से पहनाई थी । ”
” क्या ? ” वह आदमी जोर से चीखा । मै डर गया , ” हाँ । पर उसमे चिल्लाने जैसा क्या है ?’
और फिर अभी थोड़ी देर पहले गाव में बच्चों ने उन पंखों को छुआ और सारे पंख झर गए । ”
-वह आदमी अभी भी डरा हुआ लग रहा था । उसने मुझे पास बिठाया और पूछा, ” कहां पहनायी थी बनियान ? ”
-जो गांव मै पीछे छोड़ कर आया हूँ । शायद आदिवासियों का गांव है । कल रात के तीसरे पहर मै जब आ रहा था तो रास्ते में कुछ बुजुर्ग , अलाव जलाकर आग ताप रहे थे , उनमे से ही एक ने पहनाया था। ”
” अ. . . रे..रे ” उस के मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे । बड़ी मुश्किल से वो बोला , ” वो जिसे तुम अलाव की जगह बता रहे हो वो तो स्मशान है । और वहा कोई चिता जल रही होगी ?”
-अब घबराने की बारी मेरी थी । मेरे मुहँ से भी शब्द नहीं निकल पा रहे थे । मुझे सब याद आ रहा था । वो तीन बुजुर्ग से व्यक्ति, उनका वो चिलम फूंकना , वो मेरे साथ अपनेपन से बात करना , मेरे मन की बात जानकर मुझे पंखों वाली बनियान पहनाना और मुझे फिर वापस लौटकर जाने की सलाह देना ।
” पर मुझे तो वे बुजुर्ग वहाँ मिले थे । उन्होंने ही मुझे बनियान पहनाई थी । ”
-अब वो धीरे से बोला, ” सरपंच और उनके भाइयों की आत्मा होगी । ”
-अब मुझे बेचैनी होने लगी । मै प्रेतात्माओं से मिला था , इस भयावहता ने मुझे और ज्यादा अस्वस्थ कर दिया । मेरा गला सूख रहा था । उस दुकानदार ने मेरी हालत देखकर पीने के लिए पानी दिया । अब शायद मै उसके लिए खास आदमी बन चुका था । लेकिन वह मुझसे सहमा हुआ था । मुझे भूख लगी थी मैंने उससे रोटी मांगी । उसने मुझे रोटी नहीं दी । बोला , यहाँ कुछ मांगना जघन्य अपराध हैं , और उसकी सजा मौत ही है । अब मैं बहुत घबरा गया । और यह जानकार मै स्वयं भयभीत था कि मैंने स्मशान में जाकर आत्माओं से बात की । और अब कुछ मांगने पर मौत की सजा। यही मेरी बेचैनी का कारण भी था। हे भगवान् मैं कहाँ आ गया हूँ ? मुझे माँ की याद आने लगी । माँ भी कहती थी , ‘ कभी किसी से कुछ भी मत मांगो। वह सब अपने आप देता हैं । ‘ माँ का वह कौन है जो सब अपने आप बिन मांगे देता हैं ? और कहाँ छुपा हैं ? माँ तो हमेशा यह भी कहती थी , ‘ बिन मांगे मोती मिले , मांगे मिले न भीख .’ मुझे मोती नहीं चाहिए थे। पर रोटी के लिए मैं तरस रहा था । मैं भूखा प्यासा यहाँ इस अजनबी जगह पर भटक रहां हूँ ।
-थोड़ी देर बाद मैंने उससे पूछा, ” यह आदिवासियों के सरपंच और उनके भाईयो की आत्मा की क्या कहानी है? ”
-उसने बताया कि राजा ने उन्हे मार दिया। यहाँ इस गाँव में पहली बार राजा ने ग्राम पंचायत के चुनाव करवाए’। – ‘ फिर? ‘ मैंने पूछा, ‘ इसमें उनके मरने की बात कहाँ से आई ? ‘ – ‘ बताता हूँ, वह बोला, ‘ हमारे यहाँ इस राज में भीख मांगना सख्त गुनाह हैं । वर्तमान सरपंच ही दुबारा सरपंच के लिए खड़े थे और सबसे वोटों की भीख मांग रहे थे । इससे नाराज हो कर राजा ने भरे दरबार में उन्हें मौत की सजा सुनाई।’ – बाप रे !’ कितना भयंकर हैं यह सब । मुझे भूख लगी हैं , प्यास लगी है , और यहाँ तो कुछ मांगना ही अपराध हैं । अब क्या किया जाय ? दुकानदार बोला , ‘ यहाँ से जल्दी चले जाओं अगर राजा के सैनिकों ने देख लिया तो अजनबी जान कर सीधे राजा के सामें पेशी हो जाएगी । मैंने भी वहां से भागना ही उचित समझा और मैं उठ खड़ा हुआ। पर इतने में मुझे राजा के सैनिकों ने देख ही लिया । डर के मारे अब मैंने दौडना शुरू किया। पर कहाँ तक दौड़ता ? आखिर सब ने मुझे घेर ही लिया। दरबार में मेरी पेशी हुई I जीहुजूरों से दरबार भरा था I राजा ने प्रधान से पूछा मेरा अपराध I दरबारी एक स्वर में बोल पड़े , ‘ हुजूर ये भीख मांग रहा था।’ -राजा बोला , ‘ क्या तुम नहीं जानते हमारे राज में भीख मांगना जघन्य अपराध है ? क्या तुम भीख मांग रहे थे ? ‘ -दरबार और दरबारी मुखर थे और मैंने ख़ामोशी ओढ़ी थी। अजनबी जगह में मेरी आवाज कौन सुनता ? -राजा ने मेरी ओर देखा फिर बोला ,’ इसके अपराध सुनाएँ जाएं। ‘ -भरे दरबार में मेरे गुन्हाओं का पहाड़ा सुनाया गया , ‘ हूजुर ये रोटी भीख में मांग रहा था। हमारे यहाँ बनियान पहनने का रिवाज ही नहीं हैं, बिना बनियान के ही अपना नसीब हम लोगों साथ रखना पड़ता है। पर हुजूर ये कई जगह बनियान मांग रहा था।और क्या बताएं हूजर , ये सूरज की किरणें भीख में मांग रहा था। चाँद की रौशनी भीख में मांग रहा था। शुद्ध निर्मल जल भीख में मांग रहा थाता। ठंडी निर्मल हवा भीख में मांग रहा था। आते जाते लोगों से प्रेम की भीख मांग रहा था । और तो और हूजुर सबसे इंसानियत की भी भीख मांग रहा था । -राजा ने मेरी ओर देखा ।मै सर झुकाएं खामोश खड़ा था । मेरी ख़ामोशी को भीख मांगने के अपराध की स्वीकारोक्ति समझी गयी और जीहूज्रों की गवाही से मेरा जुर्म साबित हो गया था । -राजा ने फैसला सुनाया , ‘ भिखारियों को हमारे राज में मृत्यु दंड है . -मैंने फैसला विनम्रता से स्वीकार किया।

परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर
मध्य प्रदेश इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, ‘नई दुनिया’ में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इंदौर से ही प्रकाशित श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की प्रसिध्द मासिक पत्रिका ‘वीणा’ में आपके द्वारा लिखित कहानियों का प्रकाशन हुआ। आपकी और भी उपलब्धियां रही जैसे आगरा से प्रकाशित ‘नोंकझोंक’, इंदौर से प्रकाशित, ‘आरती’ में कहानियों का प्रकाशन। आकाशवाणी इंदौर तथा आकाशवाणी भोपाल एवं विविध भारती के ‘हवा महल’ कार्यक्रमों में नाटको का प्रसारण। ‘नईदुनिया’ के दीपावली – २०११ के अंक में कहानी का प्रकाशन। उज्जैन से प्रकाशित, “शब्द प्रवाह” काव्य संकलन – २०१३ में कविता प्रकाशन। बेलगांव, कर्नाटक से प्रकाशित काव्य संकलन, “क्योकि हम जिन्दा है” में गजलों का प्रकाशन। फेसबुक पर २०० से अधिक हिंदी कविताएँ विभिन्न साहित्यिक समूहों पर पोस्ट। उपन्यास, “मैं था मैं नहीं था” का फरवरी – २०१९ में पुणे से प्रकाशन एवं काव्य संग्रह “उजास की पैरवी” का अगस्त २०१८ में इंदौर सेर प्रकाशन। रवीना प्रकाशन, दिल्ली से २०१९ में एक हिंदी कथासंग्रह, “हजार मुंह का रावण” का प्रकाशन लोकापर्ण की राह पर है।
वहीँ मराठी में इंदौर से प्रकाशित, ‘समाज चिंतन’, ‘श्री सर्वोत्तम’, साप्ताहिक ‘मी मराठी’ बाल मासिक, ‘देव पुत्र’ आदि के दीपावली अंको सहित अनेक अंको में नियमित प्रकाशन। मुंबई से प्रकाशित, ‘अक्षर संवेदना’ (दीपावली – २०११) तथा ‘रंग श्रेयाली’ (दीपावली २०१२ तथा दीपावली २०१३), कोल्हापुर से प्रकाशित, ‘साहित्य सहयोग’ (दीपावली २०१३), पुणे से प्रकाशित, ‘काव्य दीप’, ‘सत्याग्रही एक विचारधारा’, ‘माझी वाहिनी’,”चपराक” दीपावली – २०१३ अंक, इत्यादि में कथा, कविता, एवं ललित लेखों का नियमित प्रकाशन। अभी तक ५० कहानियाँ, ५० से अधिक कविताएँ व् १०० से अधिक ललित लेखों का प्रकाशनI फेसबुक पर हिंदी/मराठी के ५० से भी अधिक साहित्यिक समूहों में सक्रिय सदस्यता। मराठी कविता विश्व के, ई – दीपावली २०१३ के अंक में कविता प्रकाशित।
एक ही विषय पर लिखी १२ कविताऍ और उन्ही विषयों पर लिखी १२ कथाओं का अनूठा काव्यकथा संग्रह, ‘कविता सांगे कथा’ का वर्ष २०१० में इंदौर से प्रकाशन। वर्ष २०१२ में एक कथा संग्रह, ‘व्यवस्थेचा ईश्वर’ तथा एक ललित लेख संग्रह, ‘नेते पेरावे नेते उगवावे’ का पुणे से प्रकाशन। जनवरी – २०१४ में एक काव्य संग्रह ‘फेसबुकच्या सावलीत’ का इंदौर से प्रकाशन। जुलाई २०१५ में पुणे से मराठी काव्य संग्रह, “विहान” का प्रकाशन। २०१६ में उपन्यास ‘मी होतो मी नव्हतो’ का प्रकाशन , एवं २०१७ में’ मध्य प्रदेश आणि मराठी अस्मिता” का प्रकाशन, मध्य प्रदेश मराठी साहित्य संघ भोपाल द्वारा मध्य प्रदेश के आज तक के कवियों का प्रतिनिधिक काव्य संकलन, “मध्य प्रदेशातील मराठी कविता” में कविता का प्रकाशन। अभी तक मराठी में कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।
८६ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, चंद्रपुर (महाराष्ट्र) में आमंत्रित कवि के रूप में सहभाग। पुस्तकों में मराठी में एक काव्य संग्रह, ‘बिन चेहऱ्याचा माणूस खास’ को इंदौर के महाराष्ट्र साहित्य सभा का २००८ का प्रतिष्ठित ‘तात्या साहेब सरवटे’ शारदोतस्व पुरस्कार प्राप्त। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर म. प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान, मराठी काव्य संग्रह “फेसबुक च्या सावलीत” को २०१७ में आपले वाचनालय, इंदौर का वसंत सन्मान प्राप्त। २०१९ में युवा साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा गैर हिंदी भाषी हिंदी लेखक का, बाबूराव पराड़कर स्मृति सन्मान वर्ष २०१९ हेतु प्राप्त। दिल्ली, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, इटारसी, बुरहानपुर, पुणे, शिरूर, बड़ोदा, ठाणे इत्यादि जगह काव्यसंमेलन, साहित्य संमेलन एवं व्याख्यान में सहभागीता। 


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