Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

हम नवयुग का दीप जलायें

हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)
********************

थे हिम्मतवाले, वे मतवाले, शांत, सनेही, भोले-भाले,
पाँव बिवाई, हाथ में छाले, मेहनत पूरी, रोटी के लाले,
नेकी मन में, रखते ना ताले, बोले ना मुंह से, प्रबंध निराले,
जो कुछ था सब साथ मिलालें, बात वही मिल बांट के खा लें,
साथ रहें मिल बांटें खायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

ऐसा हो, घर कौन संभाले, पड़ौसी ने तब दो घर पाले,
बड़ों का निर्णय सभी निभा लें, बाबा की पाग थी, कौन उछाले,
यही कहानी थी, हर घर की, बड़ा कहे, सबने हाँ भर दी,
सम्मान मूंछ, उम्र, अनुभव का, कह दें वे तो सब संभव था,
बुजुर्ग वही प्रतिष्ठा पायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

गाय हकदार की ताजी रोटी, भिखारी कुत्ता,अंतिम व छोटी,
बिल्ली नाग को दूध पिलाते, मंदिर में सीधा भिजवाते,
रस्ते में जहां पेड़, परिंडे थे, अंडों के लिए बरिंडे थे,
आटा चींटी को, जोगी को, कडवी गोली मीठे में रोगी को,
हर-घट, चौखट, पनघट पट जाये, हम नवयुग का दीप जलायें.

सब करते बदमाशी काफी, था दंड बड़ा, सामूहिक माफी,
बोझ बड़े से बड़ा उठा लें, चोट में थूंक, फूंक,सहला लें,
ठिठुरन से जल्दी उठ जाते, रोज दूर खेतों में जाते,
झिन-झिन हो, बहे नाक, दंत बोले, तपन अलाव ही हाथ-पग खोले,
सूरज सीचें, अनंत ऊर्जा आये, हम नवयुग का दीप जलायें.

सच की जय, उद्दंड को भय, बालक सबके, खेलें निर्भय,
तीखे अनुभव, मीठी मुस्कान, खानदान ही थी पहचान,
ईमान, धर्म, विद्या की सौगंध, मंदिर,जल से सच का संधान,
साधनहीन, अनपढ़ लोगों में, जटिल समस्या, सरल निदान,
समस्या खुद निदान बन जाये, हम नवयुग का दीप जलायें.

कहीं झोंपड़ में आग लगे, झट से चरस चढ जाती थी,
मटके लेकर सब लोग भगें, आग तुरत बुझ जाती थी,
बेघर का मिल भार उठाते, नये-नये कारीगर आते,
अलाव जलाकर चाव चाव में, नये झोंपड़ की छाँव बनाते,
गिरे धरा पर, उसे उठायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

वे थके बहुत, हारे ना थे, निर्धन बहुत, बेचारे ना थे,
अनपढ-गँवार, खारे ना थे, आवश्यकता में, न्यारे ना थे,
आग तो थी, पर दाग ना था, खरी कही, कहीं लाग ना था,
सूखी रोटी पर साग ना था, कहीं तेल, कहीं चिराग ना था,
शून्य में अपना अस्तित्व बनायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

भोजाई और लुगाई को जब, साइकिल से खेत में ले जाते,
मुक्के और गाली खाने को, खड्डे में धीरे से लुढकाते,
मेहमानों की सजी थालियाँ, साथ खाने के गीत-गालियाँ,
झरोखे-जालियाँ,मजाक-तालियाँ, दिखाते लूगड़ी,साले-सालियाँ,
सरस जीवन की प्यास जगायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

धन,दौलत,सकल कमाई का, था न्याय बराबर भाई का,
साव, सगाई, कपड़े,घर,गहने, अंतर ना होता राई का,
उपचार नजर-व्यवहार ही था, अब बहलाकर खा जाते हैं,
रिश्ता, मान, प्यार, पैसा भी, सबक नया दे जाते हैं,
दिन निकला संग उनके रात बतायें, फिर वही रीत,
प्रीत-गीत दोहराएं, हम नवयुग का दीप जलायें.

अशिक्षा, भिक्षा, गरीबी, अकाल, नित प्रलाप,शाप धोना ही था,
सरस जीवन में कुंठा जागी तो, कलयुग संताप होना ही था,
पक्षी को गोदी में सहलाते, अब पंख काट देते चुग्गा,
सड़े दांत गुड़धानी देते, कटे जड जल, अंग भंग बुग्गा,
जब तक कान्हा पृथ्वी पर आये, हम नवयुग का दीप जलायें.

बस्ते का बोझ, ना गोपीचंदर, खेल में मिट्ठू, मी-ठू का अंतर,
हार-जीत खुशियाँ छूमंतर, जीवन संघर्ष करें सब डटकर,
उलझे खुद, खुद में ही सिमटकर, अकेले सब, कलयुग का चक्कर,
नियम, प्रकृति, आकाश ना बदले, दौड़भाग है, मौन बवंडर,
दो पल बैठो, बोलें बतलायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

पशु-पक्षी सब जीव वही हैं, बिच्छू विष,मानव के अंदर,
दूध, पात, धान, सब संकर, लूटपाट का दौर भयंकर,
कलियुग-सतयुग कुछ नहीं, मीनख के मन का खोट,
निज स्वार्थ से चोट करे नित, लेता कलियुग की ओट,
बहरूपियों को उनका रूप दिखायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

गेंद झिल्ली,डंंडा-गिल्ली खेलें, बनाएं घर, जहाज-हवाई चलायें,
भरा तल कीच होने से पहले, सूखे घट में शुद्ध जल छलकायें,
दिशा निशा में खो ना जाये, दीपदान कर पथ चमकायें,
बाती पूरी जलने से पहले, दीपक में घट का तेल मिलायें,
जीव जगत विश्वास जगायें, हम नवयुग का दीप जलायें.

परिचय :-  हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *