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विकाश बैनीवाल
मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान)
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हमें गर्व है बुजुर्गों के किए हुए उपकारों पर,
गर्व है हमें माँ-बाप ने दिए सभ्य संस्कारों पर।
हमें गर्व है अपने परम् पूजनीय हिंदुस्तान पर,
गर्व है हमें राष्ट्र की आन-बान-शान-ईमान पर।
हमें गर्व है भारत माता के वीर जवानों पर,
गर्व है हमें अन्नदेवता भूमी पुत्र किसानों पर।
हमें गर्व है क्रन्तिकारी कवियों के विचारों पर,
गर्व है हमें कलमरूपी अमिट हथियारों पर।
हमें गर्व है अपनी सामाजिक संस्कृति पर,
गर्व है हमें सबसे निराली भारतीय प्रकृति पर।
हमें गर्व है हमारी अनेकता में एकता की शक्ति पर,
गर्व है हमें यहां भगवान के प्रति प्रेम की भक्ति पर।
हमें गर्व है अशफ़ाक़, आज़ाद और सरदार पर,
गर्व है हमें उस सच्चे बादशाह के पहरेदार पर।
हमें गर्व है लाला, लोहपुरुष, कलाम और अटल पर,
गर्व है जवानों की बंदूकों और किसानों के हल पर।
हमें गर्व है सच्ची श्रद्धा, आस्था और धर्म पर,
गर्व है हमें साफ-सुथरे, पुण्य पावन कर्म पर।
हमें गर्व है भारतीय स्त्रियों के पवित्र श्रृंगारों पर,
गर्व है हमें मुसीबतों में सँग रहे जिगरी यारों पर।
हमें गर्व है ख़ुद के वजूद और काबिलियत पर,
गर्व है हमें देश भक्ति की सच्ची, नेक नियत पर।
परिचय :- विकाश बैनीवाल
पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल
निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान)
शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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