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हम कबीर के वंशज

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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कलम हाथ में है हमको ये,
नाविक पार उतारेगा।
हम कबीर के वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा।।

हिन्दू मुसलमान दोनों को,
जो उठकर ललकार सके।
अंधकार को नूर के कपड़े,
पहना कर तम मार सके।।

नहीं दुश्मनी किसी से पाली,
मित्र सभी के कहलाये।
क्या करते वे आईना थे,
सब के दाग नजर आये।।

हम भी उनके पथ अनुगामी,
लोक हमें स्वीकारेगा।
हम कबीर के वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा।।

अपनी प्रतिभा और गति को,
अपनी जिद से चमकाई।
राम नाम का मंत्र सीखकर,
निर्गुण की महिमा गाई।।

मंदिर मस्जिद काबा काशी,
छाप तिलक या हो माला।
सब को दूर रखा चाहत को,
अपना खुदा बना डाला।।
यही सिखाया कर्म सभी के,
पथ के खार बुहारेगा।
हम कबीर के वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा।।

जिस पथ चले “अनन्त” कबीरा,
पथ कबीर का कहलाया।
सुविधा से समझौता करते,
नहीं कभी उनको पाया।।

बुनकर थे तो बुनी अनश्वर,
जीवन चादर, कूल बने।
दास बने अपने मालिक के,
तो मरने पर फूल बने।।

बूंद बनेगा जब सागर तो,
कहां किसी से हारेगा।
हम कबीर के वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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