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जल

डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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प्राणों का आधार जल है।
आज जल है तो कल है।
जल नहीं तो कल नहीं,
जब जीवन रक्षक जल है।
पंच तत्त्व की काया को,
परिपूर्ण करता जल है।
सत्य बात आप पहचाने,
प्रकृति का सृजक जल है।
बिन पानी दुनिया न बनती,
ईश्वर का वरदान जल है।
कुएं बावड़ी सागर नदियां,
इन सब का स्वरूप जल है।
प्रकृति का मानक तत्त्व,
फसलों का लहलहाना जल है।
बिन पानी अन्न नहीं उपजे,
वृक्ष पुष्प पर्ण कानन जल है।
अमृत नीर जगत का सानी,
पृथ्वी पर जीवन दानी जल है।
सब इसे बचाने को करें जतन,
जब अनमोल संपदा जल है।
जल ही जीवन सत्य है,
प्राकृतिक सौगात जल है।
मत बहाओ मुझे बेकार,
जल भी करता पुकार है।

परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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