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अपने पथ पर बढता चल

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स्वाति जोशी
पुणे

समर नहीं ये महायज्ञ है
अर्घ्य नहीं ये अभिषेक है
तृण नहीं ये समिधाएं है
अपनी आहुति देता चल,
अपने पथ पर बढता चल।।

प्रणव नाद का स्पंदन सुन
श्वास मधुर सरगम की धुन
हृदय ताल पर कर नर्तन
नाद ब्रह्म में बह अविरल
अपनी लय में गाता चल,
अपने पथ पर बढता चल।।

कर विशेष अब जो है शेष
मन-मानस में हो संवेद
कृति व कृत्य का दुर्गम मेल
जीवन तत्वों का सारा खेल
तू अपने पटल पर खेलता चल
अपनी धुन में रमता चल।।

अपने पथ पर बढ़ता चल…
अपने पथ पर बढता चल…

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लेखीका परिचय :- 
नाम – स्वाति जोशी
निवासी – पुणे
शिक्षा – स्नातकोत्तर ( प्राणिशास्त्र), पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से स्नातक (एकवर्षीय पाठ्यक्रम)
लेखन कार्य – स्वतंत्र लेखन


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