
मनोरमा जोशी
इंदौर म.प्र.
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मेरे इन अधरों ने, फिर से,
गीत प्रीत के गाये।
किसने आकर फिर से मेरे
सोये प्राण जगायें।
मुझे याद हैं सदियों पहले,
जब मैं गाता गीत था,
क्योंकि मेरे साथ जगत में
मन भावन सा मीत था।
मेरे सांसो की वीणा को,
जिसनें सदा सम्हाला,
केवल उसके कारण
स्वर में जादू सा संगीत था।
मेरे इन नयनों में फिर से,
ज्योति किरण मुस्काये,
किसने आकर फिर से मेरे
बुझते दीप जलायें।
चलते चलते बीच राह में
जब भी थक्कर हारा,
मिली प्रेरणा चलने की,
बस उसने मुझे पुकारा।
पथ में मुझको मिले फूल,
शूल अंगारे,
लेकिन उसके गीतों ने दे,
सम्बल मुझे दुलारा।
मेरे पथ में चीर तिमिर को
अब उजियारे छायें,
किसने आकर फिर से
नभ में अनगित चाँद सजाये।
किसने आकर फिर से
मेरे सोये प्राण जगायें।
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